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सेठ गोविन्ददास प्रयत्न । या सुखदा द्वारा बाँकेबिहारी को भगाने का रहस्योद्घाटन उसके चरित्र पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। लेखक का चरित्र-चित्रण सफल ही कहा जायगा। ___ नाटकों में समय का वातावरण उपस्थित करने के लिए लेखक ने अभिनय, वेश-भूषा, कमरे, महल, या स्थान की सजावट आदि के लिए बहुत विस्तृत रंग-संकेत दिये हैं। 'कुलीनता' में प्रथम दृश्य के निर्माण के लिए ढाई पृष्ठ, 'शशिगुप्त' में डेढ़ पृष्ठ, कर्ण' में साढ़े चार पृष्ठ, ‘महत्त्व किसे ?' में एक पृष्ठ, और 'बड़ा पापी कौन' में डेढ़ पृष्ठ का रंग-संकेत दिया गया है । इन संकेतों में मेज, कुर्सी, फर्श, छत, दीवारों की तस्वीरें, पर्दे आदि सभी को विस्तृत रूप में समझा दिया गया है। पात्रों के कपड़े, बाल, मूंछदाढ़ी आदि का भी वर्णन कर दिया गया है । नाटक के हर दृश्य में वातावरण का बहुत ध्यान रखा गया है । अभिनय और कार्य-व्यापार के लिए भी लेखक संवाद के बीच-बीच में संकेत करता रहता है।
देखिये
"त्रिलोकोनाथ -(एकदन आग-बबूला होकर खड़े होते हुए ) अच्छा, तो आरजू-मिन्नत करते-करते अब आप धन को देने पर उतारू हो गए । (चिल्लाकर) धमकी ? अोह ! मुझे धमकी ? बस उठिये, जाइये यहाँ से, मैं आपसे बात नहीं करना चाहता । (क्रोध से इधर-उधर टहलने लगता है)"
('बड़ा पापी कौन') कभी-कभी अपने नाटकों का प्रारम्भ ले बक बहुत ही शानदार और प्रभावशाली ढंग से करता है। नाटक का प्रारम्भ और अंत यदि शानदार रहे तो सामाजिक अभिनय देखने के बाद बहुत अच्छा प्रभाव और स्मृति लेकर जाते हैं। 'कुलीनता', 'शशिगुप्त' और 'कर्ण' का प्रारम्भ बहुत ही शानदार हुआ है। 'कुलीनता' और 'कर्ण' दोनों का आरम्भ एक विशाल दृश्य से होता है । सैकड़ों दर्शकों और राजा-रानियों की उपस्थिति में शस्त्रप्रतियोगिता से नाटकों का प्रारम्भ होता है। सामाजिक मुग्ध, स्तम्भित, रोमांचित और आनन्दित हो जाते हैं । 'कुलीनता' में यदुराय गोंड सर्वश्रेष्ठ वीर प्रामाणिक होता है और 'कर्ण' में कर्ण । दोनों ही समाज और शासन की दृष्टि में नीच हैं। 'शशिगुप्त' का प्रारम्भ भी एक भव्य, प्रभावशाली, विशाल दृश्य-पामीर के शिखर से होता है, जहाँ चाणक्य और शशिगुप्त विचार-विनिमय कर रहे हैं। 'कर्ण' का प्रथम दृश्य ठीक राधेश्याम कथावाचक के 'दानवीर कर्ण' के समान ही है। लगता है, उसी से प्रभावित हैं लेखक ।