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हिन्दी के नाटककार हुआ । इस समय तक हिन्दी में काफी नाटक निकल चुके थे। इनको अपनी कला को सँवारने का पर्याप्त अवसर मिल चुका था। लेखक ने इस स्थिति से लाभ भी उठाया; पर वे अपने नाटकों में कला-सम्बंधी कोई ऐसी वस्तु न दे सके जिसे नाटक-साहित्य में महत्त्वपूर्ण देन के नाम से स्मरण किया जा सके । न ही वे कोई गौरवपूर्ण और प्रसन्न निर्माण ही कर सके । लाभ उन्होंने यह उठाया कि नाटकोय छोटी-मोटी अस्वाभाविकताएं उनके नाटकों में न आ पाई। किसी पात्र के सम्मुख उसे न बताने वाले या उस के विरुद्ध भाव को स्वगत द्वारा प्रकट करने वाली स्वाभाविकता इनके किसी भी नाटक में नहीं है। वैसे अकेले में अपने हृदय के आवेश, उद्विग्नता या अन्तःसंघर्ष को प्रकट करने के लिए प्रायः सभी नाटकों में स्वगत का सहारा लिया गया है। ___ 'कुलीनता' के दूसरे अंक का तीसरा दृश्य यदुराय के स्वगत-भाषण को ही अर्पित किया गया है। छठा दृश्य भी रेवा सुन्दरी के स्वगत से प्रारम्भ होता है। 'कर्ण' में इस प्रकार का स्वगत बहुत अधिक है। पहले अंक के पहले दृश्य का श्रारम्भ कर्ण के दो पृष्ठ के स्वगत से होता है
और चौथा दृश्य कुन्ती के गाने और स्वगत से । दूसरे अंक का पहला दृश्य फिर कर्ण के स्वगत से प्रारम्भ होता है और चौथा दृश्य रोहिणी के स्वगत और गान से। तीसरे अंक का दूसरा दृश्य कुन्तो के स्वगत और गान से और पाँचवाँ कर्ण के स्वगत से प्रारम्भ होता है। चौथे अंक का पाँचवाँ दृश्य भी कर्ण के ही स्वगत से प्रारम्भ होता है, 'कर्ण' में दो-ढ़ाई पृष्ठ तक के स्वगत हैं। चरित्र या भावावेश प्रकट करने का यह सावन ऊँचे दर्जे की कला-कुशलता नहीं, कर्ण के सिवा गोविन्ददास जी के सभी नाटक इस रोग से मुक्त हैं। इस प्रकार के स्वगत अभिनय में बाधक होते हैं और वे प्रलाप-मात्र समझे जाते हैं। ___लेखक ने चाहे बहुत गहराई, रंगीनी, घुटन, व्यक्ति-वैचित्र्य, उलझन
और रहस्यमय कौतूहल अपने चरित्रों में न भरे हों, पर उनके चरित्रों में जान अवश्य है। चरित्र-चित्रण के लिए लेखक ने कई साधन अपनाये हैं। पात्र स्वगत के द्वारा अपने चरित्र के रहस्य का उद्घाटन करते पाए जाते हैं-अपनी मनोव्यथा या अन्तर्दशा बताते हुए मिलते हैं। यह साधन सभी नाटकों में अपनाया गया है। पात्रों के द्वारा भी दूसरे पात्रों के स्वभाव
और चरित्र बताये गए हैं। पात्रों के कार्यों के द्वारा ही चरित्रिक गुणों का प्रकाशन किया है। यशपाल का जैसे बांके बिहारी को गिरफ्तार कराने का