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हिन्दी नाटककार रहता था। दुःखान्त-सुखान्त भावों का मिश्रण भी नाटकों में रहने लगा। दुःखान्त-सुखान्त का भेद कन हुा । सुखान्त नाटकों में भी करुणा आदि की घटनाए रखी जाने लगी, मृत्यु दिखाना सुखान्त नाटकों में वर्जित ही रहा । कुछ दिन बाद यह भी पसन्द किया जाने लगा। नाटककला की दृष्टि से भी विकसित हुआ। चरित्रों में गाम्भीर्य आया। अभिनय में स्वाभाविकता बढ़ी। रहस्य, विस्मय, जादू आदि की बातें कम हुई। परलोक का प्रभाव और अलौकिकता की प्रास्था इस युग में भी बराबर रही, वह आगे चलकर शेक्स. पीयर की रचनात्रों को भी प्रभावित करती रही। भारत में भी इस युग में अच्छे नाटक लिखे जाते रहे, पर किसी नवीन प्रवृत्ति, आस्था, कला की उन्नति या परिवर्तन के दर्शन यहाँ नहीं हुए । दुःखान्त नाटकों का यहाँ जन्म ही नहीं हुआ, विकास की बात ही क्या; सुखान्त नाटक ही लिखे जाते रहेएक निश्चित नमूने के आदर्श और टैकनीक पर करुणा से श्रोत प्रोत नाटक भी सुखान्त ही रहे । अलौकिक वातावरण भी उनमें रहता रहा । ___ मध्य युग भारतीय नाटक के पतन और यूरोपीय नाटक के चरम विकास का काल है। बारहवीं शताब्दी में यहाँ नाटक लिखने बन्द हो गए। इसके बाद संस्कृत-नाटक का उत्थान या पुनर्जीवन नहीं हुआ। इस मध्य युग में यूरोपीय नाटक में क्रान्ति उपस्थित हो गई। कला की चरम उन्नति हुई। नाटक जीवन के अधिक निकट आ गया। मानसिक और भौतिक संघर्ष नाटकों में विशेष मात्रा में रहने लगा। चारित्रिक गहनता, गम्भीरता, अन्तद्वन्द्व नाटक के प्राण बन गए। टैकनीक भी कुछ सरल हो गया। इस युग में यूरोप-भर में प्रेक्ष-गृह निर्मित हुए। राज्य की ओर से नाट्य कला को बड़ा प्रोत्साहन मिला । अभिनय में स्वाभाविकता आई ।
सुखान्त नाटकों में करुणा से ओत-प्रोत दृश्य भी दिखाए जाने लगे। रेनेसा-युग के नाटकों से अधिक सुख-दुःख का श्रानुपातिक मिश्रण इस युग में हुआ। भयंकर अातंकपूर्ण, रोमांचकारी घटनाए भी रंगमंच पर दिखाई जाने लगीं। मृत्यु दिखाना भी वर्जित न रहा। परलोक का प्रभाव इस युग के नाटकों में भी बराबर रहा। भाग्य का हाथ मानव-विनाश या निर्माण में बहुत समझा जाता रहा। शेक्सपीयर के प्रायः सभी नाटकों में भाग्य या देव का प्रभाव स्पष्ट है। इसी युग में विश्व-विख्यात अमर कलाकार शेक्सपीयर का उदय हुआ। उसने अपनी प्रतिभा से अनेक अमर रचनाए प्रसूत की । प्रख्यात नाटककार कारेनील रेसीन, गेटे, शिलर, विक्टरह्य गो, मौलियर इसी युग में अवतरित हुए। इसमें सन्देह नहीं कि यह काल यूरोपीय नाटेक का