________________
आलोक
स्वर्ण युग है, तो भी इसमें पद्यात्मक संवाद और स्वगत की अस्वाभाविकता बनी रही। नायक-नायिका श्रादि भी अभिजात कुल के रहे। धर्म और पुराण को त्यागकर कथावस्तु इतिहास से ली जाने लगी।
उन्नीसवीं शताब्दी का अन्तिम चरण नाटक के इतिहास में नवीन जागरण और जीवन लेकर आया । यूरोपीय नाट्य-साहित्य में टी० डग्ल्यू० राबर्टसन ने अपने 'सोसायटी' 'कास्ट' और 'श्रावर्स' से नवयुग उपस्थित कर दिया। भारत में भी नवयुग ने अंगड़ाई ली और यहाँ भी साहित्य में नवीन प्रयोग प्रारम्भ हुए। पर नाटकीय जागरण यहाँ बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण से होता है। राबर्टसन के कुछ दिन बाद ही इब्सन ( सन् १८२८१६०६ ई.) ने नाटक में युगान्तर उपस्थित कर दिया। नाटक के आदर्श बदल गए । सामाजिक नैतिकता, शील, परम्परा श्रादि की नवीन परिभाषाए सामने आई। कला में नवीन परिवर्तन हुए । स्वाभाविकता (अभिनय, वेशभूषा, संवाद, चरित्र ) का अधिकाधिक समावेश होने लगा। इब्सन के प्रभाव से पाँच बातें सामने आई।
-इतिहास की ममता त्यागकर लेखक वर्तमान समाज से अपने नाटक के लिए विषय चुनने लगा । दूर न जाकर अपने निकट की दैनिक समस्याएं कलाकार सुलझाने में अधिक तत्परता दिखाई ।
२-नाटक के पात्र सम्पत्तिशाली उच्च-कुलोत्पन्न, राजा, सामन्त श्रादि म रहकर साधारण समाज के व्यक्ति रहने लगे। उनके जीवन का चित्रण करने और उनकी दैनिक समस्याएं सुलझाने में कला की सफलता मानने लगा।
३-व्यक्तिगत संघर्ष कम हुआ। समाज के प्रति विद्रोह की भावना उत्पन्न हुई। समाज के अस्वाथ्यकर बन्धन-नियम श्रादि की अवज्ञा की तीव्र भावना नाटकों में दिखाई देने लगी। पुराने श्रादर्श उपेक्षित हो गए ।
४-बाहरी संघर्ष की अपेक्षा विचारों का संघर्ष पात्रों में अधिक दिखाया गया। मानसिक उथल-पुथल अन्तर्द्वन्द्व और चरित्र की विभिन्नता को महत्त्व दिया जाने लगा।
५-स्वगत-कथन कम हुए । नाटकीय निर्देश विस्तृत रहने लगे । अभिमय के उपयुक्त नाटकों को बनाए का प्रयत्न होने लगा ? कला, जीवन, विचार, अभिनय आदि सभी में स्वाभाविकता पाने लगी । रंगमंच सरल बनने लगा। माटक भी रंगमंच के उपयुक्त लिखे जाने लगे। जार्ज बर्नर्डशा, गासवर्दी पादि इसम से बहुत प्रभावित हुए ।
इब्सन को कला ने नाटक में यथार्थवाद की प्रतिष्ठा की। इसकी प्रति