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उदयशंकर भट्ट जन्म है।"और जब सूर्य के कहने पर कि अब्दुलबिन कासिम ने उसे भ्रष्ट किया है, खलीफा उसे खाल प सिलवा देता है, तब सूर्य कहती है, "खलीफा याद रख मैंने वही किया, जो एक शत्रु दूसरे शत्रु से करता है। प्रतिहिंसा पूर्ण हुई। इस वीभत्स-काण्ड में, विश्व-विजयिनी वैजयन्ती में, स्वर्ण अक्षरों में सिन्ध का बदला लिखा जायगा।" और तुरन्त ही सूर्य और परमाल परस्पर एक दूसरे को मारकर मर जाती हैं।
नारी के इसी प्रतिशोध का रूप 'अम्बा' में श्राया है और भी सशक्त और रोमांचक रूप में। ___ नारी के ईप्यां और द्वेष, घृणा और क्रोध का रौद्र रूप 'सगर-विजय' की बहिं में मिलता है । विशालाक्षी उसकी सौत है-बाहु की उपपत्नी। उसके नाश के लिए पागल है-बौखला रही है, 'पाताल फोड़कर तुझे दुढ निकालूगी विशालाक्षी !...मेरे हृदय की आग में तुझे जलना होगा।" और क्रोध में वृक्ष पर लिपटी लता को भी मसलकर फेंक देती है-क्रोध का यह रूप सचमुच भयंकर है । बहि बदला लेने के लिए विशालाक्षी को विष दे देती है।
और बहि में कितनी शक्ति है, "क्या कहते हो मुझे बन्दी बनना होगा । मुझे बन्दी बनायोगे राजा ? ( क्रोध से ) मूर्ख, मुझे कौन बन्दी बना सकता है । पकड़ सकता है, तूफान को कौन रोक सकता है प्रलय को कौन हटा सकता है। तुम मुझे बन्दी बनायोगे दुर्दम ?"
वह बिजली-सी तेज बर्हि विशालाक्षी और बाहु की और निशानी भी रहने देना चाहती । सगर को चुरा लाती है। नदी में फेंक देना चाहती है, "कैसा मनोहर है ! पर इससे क्या, यह मेरा शत्रु है-शत्रु का पुत्र है। शत्रु का उच्छवास है, उसके उद्गार का रव है, उसकी प्रतिच्छाया है।" फिर भी कभीकभी उसके हृदय में नारीत्व की कोमलता जागती है, "किन्तु इसमें इस नन्हे, भोले सुकुमार शिशु का क्या अपराध है ? देखो न कैसे सुन्दर अोठ हैं । पतले-पतले कोमल...।" वह क्रोध में सगर को नदी में फेंकना ही चाहती है, पर वह कुन्त और त्रिपुर के द्वारा बचा लिया जाता है । कुन्त के शब्दों में बर्हि का चरित्र स्पष्ट हो जाता है, "स्पर्धा, प्रतिहिंसा का इतना उग्र रूप ? गई सांपिन-सी फुफकारती,चोट खाई सिंहनी-सी ।"
नारी का तीसरा रूप है कोमलता और शील-सौन्दर्य का । इसी में गृहिणी का रूप मी सम्मिलित हैं। यशोधरा गृहिणी के रूप में पाती है -कुलबधू के रूप में हमारे सामने आती है । एक ओर तो वह मुस्कान-डूबी, मुग्ध-मना,