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हिन्दी के नाटककार देखने को मिलता है। नारी-पात्रों में परमाल, चन्द्रलेखा, अम्बा, बहि, विशालाक्षी, गोपा अपने-अपने रूप में अत्यन्त प्राणवान चरित्र हैं । भट्ट जी के नाटकों की नारी एक ओर तो निर्मम वीरांगना है, दूसरी ओर शीलवती सुकुमार पत्नी, और तीसरी दिशा नारी के विकास की है प्रतिशोध । __ 'विक्रमादित्य' की चन्द्रलेखा और अनंगमुद्रा युवकों का रूप धारण करके राजनीति से खेलती हैं। जिस चन्द्रलेखा की अभिलाषाओं के समुद्र में प्रियतम की देदीप्यमान प्रतिभा उमंग से तैर रही है, वही कोमल-हृदया मुग्धा चन्द्रलेखा अपने प्रियतम की रक्षा के लिए राजनीतिक षड्यंत्रों में कूद पड़ती है । वह निश्चय करती है, “मेरा इस समय यही कर्तव्य है कि किसी प्रकार इन दुष्ट राजाओं की अभिसन्धि को जानकर महाराज की सहायता करूँ।" और वह षड्यंत्र में फंसे महाराज विक्रमादित्य की सोमेश्वर और चेंगी से रक्षा करते हुए 'हा महाराज ! हे जीवननाथ !' कहकर बलिदान कर देती है। अनंगमुद्रा का भी चन्द्रलेखा की ही श्रेणी में स्थान है चन्द्रलेखा का बलिदान 'प्रसाद' की मालविका के समान ही है। . इन दोनों चरित्रों का प्रतिशोध पूर्ण रूप से 'दाहर' की परमाल और सूरज में हुआ है । ये दोनों शक्तिमती प्राणवान नारी बड़े उज्ज्वल रूप में हमारे सामने आती हैं। शिकार करते हुए ये हैजाज़ के दूत को बन्दी बनाकर दाहर के दरबार में लाती हैं। प्रथम परिचय में ही इनका दिव्य नारीत्व सामने श्राता है । सिन्ध की रक्षा के लिए अलख जगाती हैं-सेनाएं जुटाती हैं-सिन्धियों को देश की रक्षा के लिए तैयार करती हैं। दोनों के चरित्र का विकास भी स्वाभाविक है। 'क्या विश्व-प्रेम और करुणा दोनों भावनाएं जीवन की सुन्दर वस्तुएं नहीं ?" में परमाल का नारीत्व सुकुमारता और प्रेम का उपासक है।
और उसका यह भ्रम सूर्यदेवी के शब्दों से दूर हो जाता है । सूर्यदेवी कहती है, "आँधी और तूफान में कोमलता की भावना प्रचण्ड अनि में सन्तोष की कामना और सर्वागव्यापी विनाशक विष की प्रबलता में बया हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ रहने से काम चलता है ?...आज जब शत्रु साठ हजार सेना लेकर सिन्ध पर प्राक्रमण किया चाहता है, घमासान युद्ध होगा-खून-खच्चर हो जायगा। उस समय पुरुषों के साथ स्त्रियों का कर्तव्य, आज यही सिन्ध की नारियों को सीखना है।
अपने हृदय की प्रतिहिंसा को प्रकट करते हुए सूर्य कहती है, "प्राह ! प्रतिहिंसा ! प्रतिहिंसा ! तेरी पाग संसार में सबसे भयंकर है ।...मैं उसकी भस्म चाहती हूँ । 'छटपटाते बिलखते लोगों को देखना चाहती हूँ और इसी में मेरा