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हिन्दी के नाटककार
उच्चता का दम्भ और अन्यों के प्रति घृणा मनुष्य को मानवीयता से पतित करती ही है, देश का भी इससे बहुत अहित होता है । और जब तक भार - तीय समाज में समानता, बन्धुत्व और समान अधिकार की बुनियाद नहीं पड़ेगी, हम मनुष्य कहलाने के भी अधिकारी नहीं ।
पात्र -- चरित्र-चित्रण
भट्टजी ने पौराणिक, ऐतिहासिक तथा सामाजिक सभी प्रकार के नाटकों की रचना की । उनके नाटकों के पात्र काल और जीवन के अनेक क्षेत्रों से हैं। भट्ट के नाटकों की भाषा-शैली पर तो संस्कृत का प्रभाव है ही, पात्रों के चरित्रों पर भी है । इतिहास और पुराण-युग के पात्रों के चरित्रों में विशेष हेर-फेर करना बड़ा भारी दुस्साहस का काम है । भारतीय नाट्य शास्त्र की परिभाषानुसार विक्रमादित्य, दाहर, सगर, वरद धीरोदात्त नायक हैं और सिद्धार्थ धीरप्रशान्त । 'कमला' वर्तमान जीवन से सम्बन्ध रखने वाला नाटक है, इसलिए उसके पात्र भारतीय नाट्य-शास्त्र के अनुसार किसी श्रेणी में नहीं रखे जा सकते ।
विक्रमादित्य वीर, निर्भय, क्षमाशील, दयालु, परोपकारी, श्रात्म - श्लाघा-हीन, विचारशील, शीलवान, सुन्दर युवक है । अनेक शत्रुत्रों को उसने परास्त किया है । नृसिंह की सहायता के लिए अकेला चल देता है । बड़े-सेबड़ा खतरा वह मोल लेता है । 'दाहर' में भी ये सभी गुण हैं । वह शरणागतरक्षक भी है। लाफी को उसने शरण दी है, जो अरब का विद्रोही सरदार है । वह युद्ध करते-करते मर गया, इससे अधिक वीरता और निर्भयता क्या होगी । और सगर ने तो अपने शत्रु हैहयवंशी दुर्दम से अयोध्या का उद्धार ही नहीं किया, प्रत्युत दिग्विजय भी की । 'मुक्ति पथ' का नायक सिद्धार्थ धीर प्रशान्त है । क्षमाशील, दयालु, धर्मज्ञानी, विरागी, अहिंसा का अवतार है । उसने ही विश्व को सर्वप्रथम करुणा का पथ दिखाया - श्रहिंसा की शिक्षा दी । 'शक - विजय' का नायक चाहे वरद हो या गन्धर्वसेन दोनों में ही वे गुण हैं, जिनसे नायक धीरोदात्त की श्रेणी में आता है।
शठनायक सोमेश्वर, कर्दम, हैजाज, नहपान ( शक- विजय ) धीरोदात्त स्वभाव के हैं । वीर, कपटी, छली, विश्वास घाती, निर्भय, श्रात्म-श्लाघा से युक्त, दुर्जेय और क्रूर हैं। भारतीय साधारणीकरण के अनुसार रसानुभूति में ऐसे पात्रों से बहुत सहायता मिलती है । नायकों के प्रति सामाजिक की संवेदना, सहानुभूति, भक्ति और शुभकामना बनी रहती है और शठनायक