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उदयशंकर भट्ट
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जिक अहं और अभिमान का चित्रण 'मुक्ति-पथ' के इस दृश्य से स्पष्ट हो जाता है :
"प्रार्थी- इस शूद्रक ने मेरे घर में प्रवेश करके मेरा घर अपवित्र कर डाला | मेरे निषेध करने पर भी यह दुष्ट मेरे घर में घुस आया । और मेरा घर कलुषित कर दिया ।
एक पंडित - तो तुम इस ब्राह्मण के घर में घुसे क्यों ?
शूद्रक - जी, प्राण बचाने के लिए ।
दूसरा पंडित - तो तुम अपराध स्वीकार करते हो ?
शूद्रक—जी !
एक पंडित - तुम्हें ज्ञात है, तुम्हारे जाने से ब्राह्मण का घर अपवित्र हो गया।
सिद्धार्थ
पहला पंडित – दूसरों को अपावन करके, हानि पहुँचाकर प्राण-रक्षा नहीं की जाती । यह शूद्र है, शूद्र भी चाण्डाल, इसने जीवक ब्राह्मण के घर को पवित्र किया, इसका दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा ।"
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- आत्म-रक्षा सब धर्मो से बढ़कर है ।
इस पर कुछ भी टिप्पणी देने की आवश्यकता नहीं। इसका परिणाम केवल पतन है ।
'कमला' में 'लेखक ने आधुनिक समाज का चित्र उपस्थित किया है । आज के समाज में कितनी उलझनें हैं, जीवन कितना रहस्यपूर्ण हो गया है, मानव-चरित्र एक पहेली बनता जा रहा है- यह सब 'कमला' में दिखाने का प्रयत्न किया गया है । कमला एक शिक्षित युवती, बूढ़े देवनारायण से व्याह दी जाती है । यह बे-मेल जोड़ा कब तक सुखी रह सकता है। इसमें समझौता भी तो नहीं हो सकता । देवनारायण सदा कमला पर सन्देह और आशंका
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दृष्टि रखता है । और अन्त में उसका सन्देह 'भ्रम' में बदल जाता है कि शशि कमला का ही पुत्र है, जो कमला की चरित्रहीनता का परिणाम है । और कमला इस ग्रात्म-वेदना से घायल होकर नदी में डूबकर श्रात्म-हत्या कर लेती है । शशि है उमा का अवैध पुत्र, जो देवनारायण के बड़े लड़के से हुआ । 'कमला' में कौमार्य जीवन की भूलों का परिणाम भी दिखाया गया 1 भट्टजी ने समाज का जो रूप 'दाहर' और 'मुक्ति पथ' में दिखाया है, वह भारतीय समाज का कलंक है - हमारी श्राडम्बरपूर्ण संस्कृति के मुँह पर सबल तमाचा है । राष्ट्रीय और सामाजिक ही नहीं मानवीय स्वास्थ्य के लिए भी उन सामाजिक मूर्खताओं, अपराधों और पाखण्डों को छोड़ना आवश्यक है ।
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