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हिन्दो के नाटककार ही अपने खेतों-खलिहानों, घर मकानों को मरघट बना देता है। हमारी सम्मति में भट्टजी ने अपने नाटकों द्वारा धार्मिक कट्टरता के प्रति अपने पाठकों में अरुचि उत्पन्न करके समाज और देश का बहुत बड़ा हित किया है ।
समाज-चित्रण भट्टजी ने अपने नाटकों द्वारा समाज के उस खोखलेपन, पाखण्ड, अाडम्बर और दुरभिमान का चित्र खींचा है, जिसके कारण भारतीय राष्ट्र सामाजिक रूप में जर्जर बन रहा है। आज भी वह निर्बल और लड़खड़ाता हुआ है । 'दाहर' में उन्होंने सामाजिक अपराधों और भूलों का सजग चित्रण किया है, जिनके कारण सिन्ध का पतन हुश्रा-दाहर की पराजय हुई । दाहर उस मूर्खता और अपराध को अनुभव करता है, "स्वर्गीय पिता, तुम्हारे इस प्रमाद का फल मुझे भोगना पड़ेगा। सिंध में जो वीर जातियाँ थीं, उन्हें ऊँच-नीच के भावों से कुंचलकर नष्ट कर डाला। हाय, वे लोहान जाट और गूजर जो हमारे राज्य की शोभा, वीरता की मूर्ति थे, आज ऊँच-नीच के विचारों से पिसे जा रहे है । ..... वे रेशमी वस्त्र नहीं पहन सकते, जीन कसे घोड़ों पर नहीं बैठ सकते, पैरों में जूते नही पहन सकते, सिर पर पगड़ी नहीं बॉध सकते, पहचान के लिए कुत्तों के बिना बाहर नहीं निकल सकते।"
मनुष्य को जिस समाज में इतना नीचे गिरा दिया जाय, क्या वह मूखों का समाज नहीं ! दाहर अपने पिता के अपराध का प्रायश्चित्त करते हुए उनको बराबरी का अधिकार देना चाहता है तो पुरोहित इसका विरोध करते हुए कहता है, “धर्म-शास्त्र इन लोगों के साथ कोई ऐसा व्यवहार करने की आज्ञा नहीं देता जिससे ये लोग उच्च जाति के लोगों के साथ मिल सकें।" धर्म-शास्त्र और स्मृतियों की प्राड़ लेकर जहाँ बुद्धिवाद का इतना तिरस्कार हो, वहाँ सचमुच प्रकृति का जो अभिशाप न पड़े, सो थोड़ा। ऐसी मूर्खता इसी देश के सामाजिक जीवन में है कि प्यासे को पानी पिलाने के लिए शास्त्र की प्राज्ञा तलाश की जाती है। और जब तक शास्त्र पानी पिलाने की श्राज्ञा देते हैं, तब तक प्यासे का प्राणान्त हो जाता है। लोहान, जाट और गूजरों को बराबरी का अधिकार दिये जाने के कारण ब्राह्मण लोग विरुद्ध हो गए और देश-द्रोह की कालिख मुंह पर लपेटकर गौरवशाली बने । धार्मिक विद्वष सिंध के पतन में जितना कारण है, सामाजिक उससे भी अधिक । ___ 'मुक्ति-पथ' में भी इस ऊंच-नीच भावना का चित्रण किया गया है। बौद्ध-धर्म का आविर्भाव ही सामाजिक समानता के लिए हुा । इसी सामा