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हिन्दी के नाटककार जिनसे हमारे सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पतन के बुनियादी कारणों पर प्रकाश पड़ता है । 'मुक्ति-पथ' की कथा सीधी-सादी है, इसमें कथा-सम्बन्धी कल्पना बहुत कम है। घटनाए सभी इतिहास-परिचित हैं । शुद्धोदन, सिद्धार्थ, देवदत्त, छंदक, आकाड़ कालाम, राहुल, गोपा, सुजाता-सभी इतिहास-प्रसिद्ध पात्र हैं। कल्पित पात्र प्रमुख कोई भी नहीं । सिद्धार्थ के चरित्र प्रकाशन और वैराग्य-विकास के लिए एक-दो घटनाए भले ही रख दी गई हों। जैसे देवदत्त द्वारा यज्ञ का छाग खोल लेने की घटना। _ 'शक-विजय' में मुख्य घटना है अवन्ती के राजा गंधर्वसेन द्वारा सरस्वती साध्वी का अपहरण और उसके भाई जैन प्राचार्य कालक द्वारा शकों का भारत में लाया जाना । जैन-ग्रन्थों, स्कन्द और भविष्य पुराण में यह कथा विभिन्न रूपों में मिलती है। पहले यह कथा कपोल-कल्पित समझी जाती
थी। प्रसिद्ध पुरातत्त्व-वेत्ता और इतिहासकार श्री काशीप्रसाद जायसवाल, जर्मन विद्वान् याकोबी, जैन-मुनि श्री कल्याण विजय प्रादि विद्वानों को खोजों ने इसे ऐतिहासिक प्रमाणित कर दिया है । कालकाचार्य द्वारा प्रेरित उसके भानजों, बलमित्र और भानुमित्र की सेना और शकवाहिनी ने वन्ती को घेर लिया और गंधर्वसेन को मार डाला । शक-शामन का यह युग १०० ईस्वी पूर्व से ५८ पूर्व तक रहा।
गंधर्वसेन, कालकाचार्य, मखलि पुत्र सरस्वती, शकराज नहपान ---ये सभी प्रमुख पात्र ऐतिहासिक हैं । वरद और सौम्या काल्पनिक । वरद से ही शकों द्वारा पीड़ित अवन्ती का उद्धार कराया गया है । भट्ट जी की सम्मति में यही विक्रमादित्य है। वरद स्वयं एक कल्पित पात्र है, इसलिए इसका विक्रमादित्य होना विवादास्पद है। विक्रमादित्य के विषय में अभी निर्णय भी नहीं हो पाया है, तो भी वरद को विक्रमादित्य मानना इतिहास की भारी उपेक्षा है । सरस्वती और कालकाचार्य की प्रात्म-इत्या चाहे इतिहास की जानकारी में न हो, या यह बात असत्य भी हो, तो भी यह सरस्वती और कालकाचार्य के चरित्र को उज्ज्वल कर देती है। ऐसी कल्पना हानिकर नहीं। ___ 'दाहर' में भी प्रमुख पात्र और प्रमुख घटनाएं इतिहास-सम्मत हैं। साहसी राय एलोर का राजा था। इसका लड़का हुआ साहीरास । यह निमरुज के बादशाह से युद्ध करते हुए मारा गया, इसकी मृत्यु के बाद राय साहसी एलोर का राजा बना । राय साहसी के दरबार में शैलज ब्राह्मण के लड़के चचं का प्रवेश साधारण अधिकारी के रूप में हुआ। धीरे-धीरे वह