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हिन्दी के नाटककार के पीछे पाँचवाँ बनाया जा सकता है और चौथा समात होो ही उसका सामान हटाकर पाँचवें दृश्य का परदा उठा दिया जा सकता है।
दूसरा तथा तीसरा अंक तो इतने सरल हैं कि इनके सम्बन्ध में कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं। तीसरे अंक का ५ वा तथा ७ वाँ दृश्य बड़े हैं
और प्रभावशाली भी । वे दोनों एक ही दृश्य हैं। पाँचवें से ही सातवें का काम लिया जा सकता है। ___'छाया' तथा 'बन्धन' के दृश्य-विधान तो रंगमंच की सरलता और सादगी के आदर्श उदाहरण हैं। दो सैट्स में नाटक पूरा हो जाता है। एक मध्यवर्गीय गृहस्थ का मकान तथा दूसरा एक गाँव की झोंपड़ी। शेष सभी दृश्य नदी, बाग, जंगल आदि के हैं, जिनके निर्माण की आवश्यकता नहीं, परदों से भी काम चल सकता है। 'बन्धन' में भी दो टैट चाहिए-एक 'धनी का गोष्ठी-भवन' तथा दूसरा गरीब का मकान ।' शेष सभी दृश्य बाहरी हैं। ___ नाटकीय अभिनय सम्पन्नता की दृष्टि से प्रेमी जी का 'उद्धार' बहुत ही उच्च कोटि का नाटक है । इसमें रंग सूचनाए या निर्देश भी विस्तृत, श्रेष्ठ, अभिनयोपयुक्त, लाभप्रद और वातावरण को उपस्थित करने वाले हैं। 'उदार के जैसे निर्देश किसी अन्य नाटक में नहीं। इन निदेशों से वस्त्र रूप-सम्पादन ( Make-up ) तथा अभिनेता के चुनाव में पूरी-पूरी सहायता मिलती है
'उद्धार' का दृश्य-विधान भी अत्यन्त उपयुक्त, सरल तथा नाटकीय है । पहला अक इस प्रकार है-१. एक खेत, २. राज-बाटिका, ३. राजमहल का एक कक्ष, ४. राज-वाटिका, ५. एक झोंपड़ी, ६. पहाड़ की तलहटी, ७. राज-दरबार । इन सातों दृश्यों में कोई भी दृश्य ऐसा नहीं जो अगले दृश्य के निर्माण में बाधक हो। छोटे-से-छोटे निर्माण योग्य दृश्य के पहले ऐसा दृश्य है, जिसे बनाने की आवश्यकता ही नहीं। दूसरा तथा तीसरा अंक भी इसी प्रकार है । राज-भवन से पहले जंगल या वाटिका के दृश्य हैं, जिससे राज-भवन के दृश्य बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
अभिनय सफल बनाने में कार्य-व्यापार, कौतूहल, जिज्ञासा और अकस्मात् या अनाशित घटनाओं का भी बड़ा महत्व है । श्रारम्भ और अन्त भी प्रभावोत्पादक होना चाहिए । 'रक्षा-बन्धन' का प्रथम दृश्य ही इसकी सफलता की घोषणा कर देता है । सहसा बाघसिंह का प्रवेश और धनदास की कमर पर लात लगाना, जवाहर बाई का श्राना और विक्रमादित्य को फटकार