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हरिकृष्ण 'प्रेमी'
१४३ बताना, कर्मवती और उदयसिंह का भी उपस्थित होना-नाटकीय क जा को चरम सफलता है। यह कार्य-व्यापार, अनाशितता, अकस्मात् तथा प्रभाव की दृष्टि से महान् दृश्य है । पहले अंक का छठा दृश्य राजपूत संस्कृति का भव्य रूप उपस्थित करता है। दूसरे अंक का सातवाँ दृश्य कार्य-च्यापार और नाटकीय गतिशीलता का भव्य उदाहरण है। _ 'रक्षा-बन्धन' का अन्त भी बहुत ही प्रभावशाली है। वह एक ओर तो आँखों में बेबसी की बदली बरसाने वाला और दूसरी ओर मस्तक को गौरव से चमकाने वाला है।
'छाया' और 'बन्धन' अपने विषयानुकूल गतिशीलता और प्रवाह लेकर चले हैं। 'छाया' का अन्तिम दृश्य विद्य त् के समान सहसा पुतलियों के सामने मानव को प्रकाश देने वाली छाया को महान् रूप में उपस्थित करता है । कवि के जीवन का चित्र ही है 'छाया', इसलिए इसका प्रारम्भ काव्य और कला की चर्चा से होता है । छाया का पहले अंक का चौथा दृश्य, दूसरे अंक का तीसरा-पाँचवाँ और नाटक का अन्तिम दृश्य भव्य हैं। ____ 'उद्वार' भी ऐसी प्रभावशाली और नाटक में सहसा रोमांच खड़े कर देने वाली घटनामों से सम्पन्न है। पहले दृश्य में हमीर के हृदय में सुधीरा एक कौतूहल उत्पन्न कर देती है उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में । तीसरा दृश्य (अंक पहला) ठीक 'रक्षा-बन्धन' के प्रथम दृश्य के ही समान है। सुजान के रंग में भंग यहाँ अजयसिंह के द्वारा होता है। सातवें दृश्य में महाराणा के दरबार में हमीर के द्वारा मुञ्ज का कटा सिर लेकर प्रवेश एक रोमांचकारी घटना है । 'उद्धार' का भी प्रथम और अन्तिम दृश्य अत्यन्त प्रभावोत्पादक है । 'उद्धार' प्रेमी जी के 'रक्षा-बन्धन' की जोड़ का नाटक है। 'उद्धार', 'छाया', 'बन्धन'
और 'मित्र' आदि-सभी में १२-१३ से अधिक पात्र नहीं । 'रक्षा-बन्धन' में अश्यय लगभग बीस पात्र हैं पर कई का तो बहुत थोड़ा ही काम है । __भाषा श्रादि की दृष्टि से तो कुछ कहना ही व्यर्थ है। प्रेमीजी की भाषा नाटकोचित, पात्रोचित और परिस्थिति के अनुकूल होती है। वह स्वच्छ प्रभावशाली, भावमयी, चलती हुई, चुस्त और चुभती हुई है-सर्वथा अभिनय के उपयुक्त।
अभिनय का ध्यान रखते हुए भी प्रेमीजी के कई नाटकों में रंगमंचसम्बन्धी त्रुटियाँ हैं। 'शिवा-साधना' को इसके प्रमाण में उपस्थित किया जा सकता है । शिवा-साधना' में पात्रों की खासी भीड़ है। पुरुष हैं चौंतीस और स्त्रियाँ हैं नौ । सिपाही सहेली की इनमें गिनती नहीं। इस