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हरिकृष्ण 'प्रेमी' भाषा की दृष्टि से कुछ भी कहना व्यर्थ है। प्रेमी की भाषा नाटकोचित, भावमयी, स्पष्ट, चुस्त, प्रभावशाली और स्वच्छ है । ऐसी निर्दोष और भली भाषा कम ही लोग लिख पाते हैं । सादगी और शक्ति दोनों गुण भाषा में होना लेखक की बहुत बड़ी सफलता है-यह प्रेमी में पूर्ण रूप से है।
प्रेमी जी के विकास की यात्रा का ही ऊपर दिग्दर्शन कराया गया है। अभी वे अनेक नाटक भेंट करेंगे, पूरा मूल्यांकन तो अभी किया ही नहीं जा सकता। पर जो-कुछ सामने हैं, उसी के आधार पर वे हिन्दी के गौरवशाली कलाकार हैं।
प्रेमी जी अपने नाटकों की रचना करते समय इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं कि उनके नाटक अभिनीत हो सकें। 'स्वप्न-भंग' की भूमिका में वह लिखते हैं, “मैंने इन नाटकों में भाव दिये हैं, कला दी है या नहीं, यह कलाविद् देखें-मुझे देखने की फुर्सत नहीं। हाँ, इतना प्रयत्न तो मैं करता हूँ कि नाटक रंगमंच के उपयुक्त रहें, जन-साधारण की पहुँच के बाहर न हों और उनमें रसानुभूति का अभाव न हो।" ।
अभिनेयता प्रेमी जी के नाटकों में साहित्य और अभिनय-कला-दोनों का प्रशंसनीय सामंजस्य है। हिन्दी के अन्य प्रतिभाशाली विख्यात नाटककारों की अपेक्षा प्रेमी जी ने अपने नाटकों में अभिनय का अधिक ध्यान रखा है। प्रेमी जी के सभी श्रेष्ठ नाटकों का अनेक स्थानों पर अब्यवसायी नाट्य-मण्डलों द्वारा सफलतापूर्वक अभिनय हो चुका है । 'रक्षा-बन्धन', 'स्वप्न-भंग', 'छाया', 'बन्धन' और 'उद्धार' अभिनय की दृष्टि से भी उतने ही श्रेष्ठ हैं जितने वे साहित्यिक दृष्टि से । 'रक्षा-बन्धन', 'छाया', 'स्वप्न-भंग', 'बन्धन', 'मित्र' तथा 'उद्धार'--सभी में तीन-तीन अंक हैं । केवल 'शिवा-साधना' चार अंकों का है। कोई भी नाटक अधिक लम्बा नहीं-किसी का भी अभिनय ढाई घंटे से अधिक देर तक नहीं जा सकता। ___सभी नाटकों का दृश्य-विधान बहुत ही सरल और नाटकोचित है। 'रक्षा-बन्धन' के प्रथम अंक का दृश्य-विधान है-१. चित्तौड़ के महाराणा विक्रमादित्य का भवन, २. मेवाड़ के वन की पगडण्डी, ३. राज-भवन की वाटिका, ४, माण्डू का राजमहल-बहादुरशाह और मल्लखाँ, ५. महाराणा विक्रमादित्य का राजभवन तथा ६. चित्तौड़ का भीतरी भाग। इन दृश्यों में चौथा तथा पाँचवाँ हो बड़े दृश्य हैं, जो आगे-पीछे हैं। चौथे दृश्य का थोड़ासा सामान हटाकर तुरन्त पाँचवाँ बनाया जा सकता है या एक साथ ही चौथे