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हिन्दी के नाटककार
कम्पन -- सबका चरित्र रंगीन चित्रों के समान स्पष्ट है । औरंगजेब का चरित्रोद्घाटन करने में भी लेखक ने सूक्ष्म कल्पना और अन्तर्भेदी दृष्टि का प्रशंसनीय परिचय दिया है ।
प्रेमी जी ने अपने सभी नाटकों में वातावरण का भी पूरा ध्यान रखा है— वातावरण सम्बन्धी दृश्यों से नाटकीय लाभ उठाया है । - 'रक्षा-बन्धन' में पहले अंक का छठा दृश्य राजपूती संस्कृति का सही वातावरण उपस्थित करता है। राखी का पर्व क्षत्रियों का बलिदान - पर्व है । 'शिवा-साधना' का प्रथम दृश्य भवानी के मंदिर का है, यह भी वातावरण की दृष्टि से बहुत सफल और आवश्यक है । 'स्वप्न भंग' में ताज के पास का दृश्य वातावरण ी नहीं उपस्थित करता, नाटक का उद्देश्य भी घोषित कर देता है । भावना और कला का अवतार ताज हिन्दू-मुसलिम एकता और है । 'उद्धार' के तीसरे श्रंक के चौथे दृश्य में भी दुर्गा की मूर्ति के सामने चित्तौड़ के उद्धार की प्रतिज्ञा की जाती है । ऐसे दृश्यों का उपयोग की दृष्टि से बहुत है । 'छाया' में स्थान और समय का चुनाव बहुत ही अच्छा हुआ है ।
कला का प्रतीक
प्रेम जी की कला के विषय में एक बात और बड़े उभरे हुए रूप में सामने श्राती है । वह है गीतों का प्रयोग । अधिकतर नाटकों में दृश्य का आरम्भ ही गीत से होता है । 'रक्षा बन्धन' के पहले अंक का दूसरा, तथा छठा और तीसरे अंक का चौथा, 'शिवा-साधना' के पहले अंक का छठा, दूसरे अंक का पहला, तीसरे अंक का दूसरा, चौथे श्रंक का पहला, चौथा और पाँचवाँ; 'उद्धार' के पहले श्रंक का दूसरा, दूसरे अंक का पहला, आठवाँ और तीसरे का दूसरा दृश्य गीत से ही आरम्भ होते हैं । यह प्रवृत्ति 'स्वपन-भंग' में चरम सीमा को पहुँच गई है । पहले अंक का पहला, दूसरा, चौथा, पाँचवाँ दूसरे श्रंक का पहला, पाँचवाँ छठा; तीसरे अंक का पहला और सातवाँ दृश्य गीत से ही श्रारम्भ होता है। इसमें वीणा का काम केवल 'गीत गाकर दृश्य को प्रारम्भ करना ही मालूम होता है । इस नाटक में कुल तेरह गीत हैं, जिनमें ६ गीत केवल दृश्य प्रारम्भ करने के लिए ही हैं ।
इसमें सन्देह नहीं कि गीत से दृश्य प्रारम्भ करना कहीं-कहीं बहुत च्छा होता है । इससे दर्शकों को श्राकर्षित किया जाता है; पर हर दृश्य के आरम्भ में गीत रखना बहुत ऊँची कला नहीं। गीतों में विभिन्न छन्द होने चाहिए | पर 'शिवा साधना' और 'स्वप्न भंग' दोनों में छन्दों का परिवर्तन बहुत कम है ।