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हरिकृष्ण 'प्रेमी'
१३६ पात्रों की संख्या और उनके चरित्र का विकास भी नाट्य-कला का महत्वपूर्ण अंग है। रचना-क्रम से ज्यों-ज्यों प्रेमी जी आगे बढ़े हैं, पात्रों की संख्या तो कम होती गई है, उनका चारित्रिक विकास अधिक होता गया है। 'रक्षा-बन्धन' में १५ पुरुष तथा ५ स्त्रियाँ हैं। 'शिवा-साधना' में ३४ पुरुष ६ स्त्रियाँ । 'स्वप्न भंग' में ७-८ पुरुष और ५ स्त्रियाँ । 'छाया' में ६ पुरुष और ३ स्त्रियाँ । 'मित्र' में ८ पुरुष और १ स्त्रियाँ तथा 'उद्धार' में हैं पुरुष और ३ स्त्रियाँ । पात्रों की संख्या की दृष्टि से 'शिवा-साधना' में ही अधिक भीड़-भाड़ है। यह दृश्य-विधान की दृष्टि से भी दोषपूर्ण है। शेष सभी नाटक पात्रों की संख्या की दृष्टि से ठीक है। चरित्रों का विकास 'रक्षा-बन्धन' में बहुत अच्छा है। श्राश्चर्य होता है कि प्रेमी जी का यह प्रारम्भिक नाटक होते हुए भी हर दृष्टि से इतना उच्चकोटि का है। विक्रमादित्य श्यामा-दोनों चरित्र-विकास की दृष्टि से अत्यन्त सफल हैं। भारतीय दृष्टिकोण से कर्मवती, बाघसिंह, जवाहरबाई, हुमायूँ महान् चरित्र हैं।
प्रेमी जी का चरित्र-विकास स्थूल से सूक्ष्म की ओर होता गया है। बाहरी लपक-झपक, दौड़-धूप कम होती गई और हृदय की सूक्ष्म वृत्तियों का चित्रण बढ़ता गया है। यदि इसका ग्राफ बनाया जाय तो चरित्र-विकास की पहली ऊँची मीनार होगी रक्षा बन्धन', दूसरी 'स्वप्न-भंग', तीसरी 'छाया'। इन सबसे ऊंची होगी 'स्वप्न-भंग' की मीनार । 'रक्षा-बन्धन'
और 'स्वपन-भंग' के बीच की रेखा ढीली पड़ी-सी दीखेगी। इसी प्रकार 'स्वप्न-भंग' और 'छाया' के बीच की रेखा भी कुछ ढीली मालूम होगी। ___ 'रक्षा-बन्धन' का उच्चकोटि का चरित्र-चित्रण 'शिवा-साधना' और 'प्रतिशोध' में निर्बल पड़ गया है और 'मित्र' तथा 'उद्धार' का चरित्रचित्रण भी नीचे उतर पाया है। 'छाया' में नारी और पुरुष दोनों ही अपने-अपने यथार्थ रूप में आये हैं । रूप-तृप्ति, जो कि काम की भूख का ही एक पहलू है, इस नाटक में जीवन के घाव पर मरहम बनकर आई है । 'स्वप्न-भंग' चरित्र-विकास की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ नाटक है। ऐतिहासिक होते हुए भी इसमें प्रेमी जी ने चरित्र का उद्घा न करने में कमाल की सफलता पाई है। रोशनारा एक तूफानी नारी; शाहजहाँ एक अस्थिर चित्त दुविधा की भंवर में फंसा पिता, दारा अाशा-निराशा, भाग्य और पौरुष, आँसू और ऐश्वर्य का देवता, जहाँपारा एक व्यथित उच्छवास को घायल