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________________ हरिकृष्ण 'प्रेमी १२६ व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा को प्रेमी ने उसके नंगे रूप में रखा-उसे धर्म की चादर ओढ़कर न आने दिया । धर्म को धर्म के पवित्र अासन पर ही प्रतिष्ठित रहने दिया। छल-कपट को धर्म का रूप धारण न करने दिया। यह कार्य वास्तव में विशाल निर्माण कारी है। 'रक्षा-बन्धन' में कर्मवती-साँगा की पत्नी कर्मवती का चित्तौड़ के शत्र बाबर के पुत्र हुमायूँ को भाई बनाना और राखी भेजना, विश्व-इतिहास में दिव्य घटना है। यह घटना ही दोनों सम्प्रदायों को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए पर्याप्त है। हुमाय ने भी यह प्रमाणित कर दिया कि वह एक सच्चा इन्सान है। धार्मिक एकता या सहिष्णुता के लिए पारस्परिक सहयोग और मानवता का प्रदर्शन जादू के समान है। शरणागत को शरण देना, भारतीय सांस्कृतिक परम्परा ही नहीं मानवता का महान् आदर्श भी है। विक्रमादित्य मेवाड़ में चाँदखाँ को शरण देता है और यही बहाना बहादुरशाह को मेवाड़ पर आक्रमण करने का मिल जाता है। ___ एकता के लिए धर्म की सहिष्णुता आवश्यक है। हुमायूँ अपने सेनापति से कहता है, “हिन्दुओं के अवतारों ने और तुम्हारे पैगम्बर ने एक ही रास्ता दिखाया है । कुरान शरीफ में साफ लिखा है कि हमने हर गिरोह के लिए इबादत का एक खास रास्ता मुकर्रर कर दिया है, जिस पर वह अमल करता है, इसलिए इस पर झगड़ा न करो।" शाह शेख औलिया भी बहादुरशाह को समय-समय पर धर्म का वास्तविक प्रकाश दिखाता रहता है। वह भी दोनों धर्मों का समान सम्मान करने का उपदेश देता है। चित्तौड़ से अधिक शिवाजी का नाम मुसलमानों को भड़काने वाला है। दुर्भाग्य से ऐसे चरित्रों को स्वार्थियों ने साम्प्रदायिक रंग में भी खूब रंगा है। ऐसे नायक को लेकर नाटक लिखना और धार्मिक कट्टरता, विद्वष और विरोध को बचा जाना ही एक बहुत बड़ी सफलता समझी जानी चाहिए, साम्प्रदायिक सद्भावना की प्रतिष्ठा करना तो और भी दुरुह कार्य है । फिर भी प्रेमी जी की कलम ने दृढ़ता से अपनी बात की आन रखी और कहीं भी साम्प्रदायिक गंध नाटक में न श्राने दी। शिवाजी को इतिहास का महान् इन्सान चित्रित किया-साम्प्रदायिक द्वष से अछूता। ऐसे निर्मल और चमकीले चरित्रों को पाकर ही इस अाँधी-तूफान से भरी धार्मिक कट्टरता की काली रात में प्रकाश मिल सकता है। किसी भी मुस्लिम नारी के सम्मान का रोम श्री शिवाजी के राज में कोई नहीं छू पाया। जब भी कुरान शरीफ हाथ लगी, उसे श्रादर पूर्वक किसी मुसलमान के पास पहुँचा दिया गया। किसी ने भी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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