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हिन्दी के नाटककार
लेता है- 'उद्धार' में भी देश भक्ति के मस्ताने और गौरवपूर्ण स्वर सुनाई दे रहे हैं
"हर जुबाँ पर एक नारा, है हमारा देश प्यारा । आग की संतान, हम डरते नहीं, जान देते हैं, मगर मरते नहीं, इस गुलामी से सुलह करते नहीं,
हम कदम हँस-हँस बढ़ाते
मृत्यु का पाकर इशारा ।"
'उद्धार' में भी वही सन्देश है, वही प्रेरणा है, वही प्रकाश है। राजपूत इतने वीर, निर्भय, सशक्त और योद्धा होते हुए भी अपने दम्भपूर्ण वंशाभिमान और कुल-गौरव की शान में मारे गए। देश को भी उन्होंने पीछे डाल दिया । 'उद्धार' ने उनको नया जीवन - प्रकाश दिया है। हमीर कहता है, " आपको वंशाभिमान के अतिरेक ने पथ भ्रष्ट कर दिया था, किन्तु हमें जानना चाहिए देश तो जाति, वंश और सभी सांसारिक वस्तुनों से ऊँचा है । उसकी मान-रक्षा के लिए हमें समस्त का बलिदान करना चाहिए ।”
देश का यथार्थ अर्थ समझाने की स्थान-स्थान पर लेखक ने चेष्टा की है । शुद्ध व्यक्तिगत पौरुष और वीरता का प्रदर्शन देश सेवा नहीं है, जैसा कि राजपूतों ने समझ रखा था, बल्कि उसे सर्वोपरि समझकर अपनी व्यक्तिगत Harrier का लय ही देश की सच्ची भक्ति है । यही यथार्थ देश-भक्ति जब हमारे प्राणों में जागेगी, तभी अखण्त भारतीयता का ज्ञान हमें हो सकेगा ।
प्रेमीजी की देश-भक्ति या राष्ट्रीयता का दूसरा पक्ष है - समस्त भारतीयता की भावना और इसका स्वरूप हैं, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य । प्रेमी ने अपनी सामंजस्य - कुशल प्रतिभा, इतिहास-सम्मत ज्ञान और मानव हितैषी कल्पना के द्वारा साम्प्रदायिक एकता का महान् चित्रण किया है । यह प्रेमी के ही विशाल हृदय और उदार मस्तिष्क का काम है कि उसने हिन्दू-मुस्लिम-विशेष के तूफानी समुद्र में से मानव-प्रेम, धार्मिक सहिष्णुता, साम्प्रदायिक सहयोग बन्धुत्व के अमर रत्न निकालकर भारतीय समाज को प्रकाश दिखाया । चित्तौड़ का नाम ही हिन्दू-मुस्लिम-विरोध का प्रतीक समझा जाता रहा है । उसी चितौड़ को प्रेमी ने दोनों के प्रेम की गाँठ बना दिया । क्या यह महान् उद्भावना नहीं ? सचमुच, यह कार्य राष्ट्रीय तीय इतिहास में द्वितीय है । राजनीतिक स्वार्थ को साम्राज्य- लोलुपता को,
दृष्टिकोण से भार