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हरिकृष्ण 'प्रेमी' 'रक्षा-बंधन' की श्यामा, जो मेवाड़ के राज-वंश से घृणा करती थी, चारणी के द्वारा प्रबोधन पाकर कहती है, “तुम सच कहती हो, देश सर्वोपरि है, सर्वश्रेष्ठ है । हमारे दु:खों की क्षुद्र सरिताएं उसके कष्ट और संकट के महासमुद्र में डूब जानी चाहिएं ।" मेवाड़ की रक्षा के लिए कर्मवती, जवाहरबाई, बाघसिंह, अर्जुनसिंह सभी तत्पर हैं—सभी बलिदान-पथ की अोर पागल परवानों के समान बढ़ते जा रहे हैं । श्यामा, माया, चारणी गाँव-गाँव में घूमकर देश-भक्ति का अलख जगा रही हैं। मेवाड़ के कण-कण में गूंज रहा है'जय जय जय मेवाड़ महान् ।' और 'वीरो समर-भूमि में जाओ।'
और तब तक न समर-भूमि में ही कोई जा सकता है, न मेवाड़ को ही महान् बना सकता है, जब तक कि कर्मवती के इन शब्दों को न समझ ले, "जब तक हम अपने व्यक्तित्व को, सुख-दुःख और मानापमान को, देश के मानापमान में निमग्न न कर देंगे, तब तक उसके गौरव की रक्षा असम्भव है, तब तक हम मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हो सकते।" __ 'शिवा-साधना' शिवाजी की स्वाधीनता की साधना का ही मूर्त रूप है । महाराष्ट्र को वह परदेसियों की फौलादी दासता से मुक्त करता है। रामसिंह जब उसे समझाता है कि मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लो तो वह कहता है, "तुम ही कहो, देश के साथ विश्वास-घात कैसे करूँगा ?" महाराष्ट्र को स्वाधीन करना ही नहीं, उसे भविष्य में भी स्वाधीन और सुरक्षित रखने की चिन्ता उसे लगी रहती है, “जब तक पुण्य-भूमि शत्रुओं के अस्तित्व से शून्य न हो जाय, तब तक स्वराज्य की सीमा का विस्तार व्यर्थ है।" . महाराष्ट्र की स्वाधीनता के लिए बाजी प्रभु, तानाजी मालसुरे तथा बाजी पासलकर-जैसे वीरों ने बलिदान दिया है । उन्होंने देश को सर्वोपरि समझा है।
_ 'मित्र' और 'उद्धार' में भी देश के लिए हृदय में पागलपन लिये, मस्तक में मर मिटने की साध लिये, और कर्मों में बलिदान की चमक लिये अनेक पात्र मिलते हैं।
सुजानसिंह को विलासी, अयोग्य और आलसी होने के कारण उसी का पिता अजयसिंह युवराज पद से वंचित कर देता है । सुजान भी मेवाड़ के गौरव के लिए, चित्तौड़ के उद्धार के लिए हमीर को वह पद सहर्ष प्रदान कर देता है । दुर्गा और सुधीरा मेवाड़ के गाँव-गाँव में घूमकर सैनिक-प्रेरणा प्रदान करती हैं। हमीर अपनी वीरता और पौरुष से चित्तौड़ का उद्धार कर