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हिन्दी के नाटककार 'राजमुकुट' में बारह गाने हैं। गानों की यह भरमार पारसी-स्टेज को ही देन है। पहले अंक, दूसरे दृश्य में शीतलमेनी का गाना
"अपमान की आग
मेरे मन में जाग री जाग' बाल खुले, बे-सुध-बे-सुध पन्ना का अपने पुत्र का शव लेकर गाते हुए श्राना
"तुम जागो लाल निशा बीती तुम जीवन दे जीते रण को
में विष के घुट पिये जीती ।" विजय-गर्विता शीतलसेनी गाती हुई आती है
"तू नाच मधुर मति से प्रति हिंसे, हे रक्त-रंगिनी
चपले चंचल पग से यति से ।" आदि पारसी-रंगमंच का ही प्रेम है । पारसी-रंगमंच पर मरण, युद्ध, रसोई, हाथापाई, सड़क, जंगल-सभी जगह जो गानों की अस्वाभाविक भरमार को, वही राजमुकुट' में प्रकट होती है। बच्चे की लाश गोद में है और गलेबाजी हो रही है।
पंतजी के नाटकों में उद्देश्य की दृष्टि से ईश्वरीय न्याय (1Poetic jus tice) की प्रतिष्ठा भी निलती है। इसलिए उनके नाटक सुग्वान्त हैं। 'वरमाला' में अवीक्षित-वैशालिनी-मिलन, राजमुकुट' में बनवीर की पराजय और उदयसिंह का राज्यारोहण, 'अंगूर की बेटी' में माधव का नदी में गिर कर मरना और मोहनदास-कामिनी और विनायक-विन्दु-मिलन, 'अन्त: पुर का छिद्र' में मागंधिनी की मृत्यु और उदयन-पमा का पुन: प्रेम-सम्बन्ध, 'सिन्दूर बिन्दी' कुमार-विजया का पुनर्मिलन श्रादि नाटकों को सुखांत बना देते हैं और ईश्वरीय न्याय का प्रमाण भी दे देते हैं।
पंतजी के नाटकों की भाषा सरल, सुबोध गतिशील भावपूर्ण और अवसरोचित है। संवाद प्रायः संक्षिप्त हैं। पूरे नाटक में एक-दो स्थल ही ऐसे आये हैं, जहाँ संवाद लम्बे हो गए हैं, शेष सभी स्थलों पर स्फूर्तिमय
और छोटे-छोटे वाक्यों में संक्षिप्त संवाद है। 'अंगूर की बेटी' में एक-दो स्थलों पर अंग्रेजी वाक्यों का भी प्रयोग है। नाटकीय निर्देश भी बहुत समझदारी और चरित्र तथा अभिनय को ध्यान में रखकर दिये गए हैं।