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गोविन्दवल्लभ पन्त
११५ भाषा और चरित्रों पर कहीं-कहीं रोमाण्टिक प्रभाव भी लक्षित होता है। 'वरमाला' में वैशालिनी और अवीक्षित और 'अन्त:पुर का छिद्र' में पद्मावती के चरित्र और संवाद दोनों ही रोमाण्टिक प्रभाव से युक्त हैं।
अभिनेयता पंतजी के प्राय: सभी नाटक बड़ी सफलता से अभिनीत किये जा सकते हैं। अभिनय की दृष्टि से यदि विचार करें तो सम्भवतः श्रापके नाटक हिन्दी के अन्य सभी नाटकों से अधिक अभिनय-गुण-पम्पन्न हैं। रंगमंच का आपके नाटकों में पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है-यद्यपि एक-दो स्थलों पर अभिनय असम्भव भी है, वे स्थल नाटकीय कला से पूर्ण न होकर फिल्मी प्रभाव से अधिक प्रेरित हैं। ___ वरमाला, राजमुकुट, अंगूर की बेटी, अन्त:पुर का छिद्र श्रादि सभी नाटकों में तीन-तीन अंक हैं। आकार में भी वे अभिनयोचित हैं। पंतजी के किसी भी नाटक के अभिनय में ढाई घण्टे से अधिक समय नहीं लग सकता। नाटकों का दृश्य-विधान भी पंतजी की अभिनय-कला-सम्पन्न प्रतिभा का परिचय देता है। बहुत कम स्थल ऐसे मिलेंगे, जहाँ दृश्य-निर्माण में कठिनता उपस्थित हो। 'वरमाला' का दृश्य-विधान बड़ा सरल है। दो दृश्य लगातार साथ-साथ ऐसे नहीं आये, जिनके बनाने में बहुत-सा समय लगे या जो इतना स्थान घेर लें कि तीसरा दृश्य बनाने में कठिनता उपस्थित हो। पहले अंक का पहला दृश्य है वाटिका का, जिसमें वैशालिनी और अवीक्षित-दोनों का परिचय करा दिया गया है। दूसरा दृश्य है स्वयंवरमण्डप का, जिसमें अवीक्षित शीघ्रता से वैशालिनी का हरण करता है। इस दृश्य में केवल कार्य-न्यापार है। तीसरा दृश्य है वन का, और चौथा राजप्रासाद का। मण्डप और राज-प्रासाद के बीच में वन का दृश्य डालकर दोनों के बनाने का समय मिल जाता है।
__ 'राजमुकुट' में प्रथम अङ्क का प्रथम दृश्य है-महाराणा विक्रम का विलास-भवन, दूसरा बनवीर का महल, तीसरा चित्तौड़ का मंदिर, चौथा बनवीर का महल । पहले दृश्य को ही कुछ परिवर्तित करके दूसरा बनाया जा सकता है और तीसरा दृश्य इनके पीछे के पर्दे में बनाया जा सकता है। दूसरे दृश्य का पर्दा गिराकर सामान हटाने में दो मिनट से अधिक नहीं लगेंगे। ___ 'राजमुकुट' में दो विशाल दृश्यों के बीच में समय का अन्तर रखा गया है। दूसरे अङ्क का अन्तिम दृश्य गुफा में काली के मंदिर का है और