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हिन्दी के नाटक्कार की कोशिश, श्रादि काल्पनिक घटनाए लगती हैं। इनमें नाटकीयता लाने, चरित्र तथा कथा के विकास के लिए ही रखा गया है, इनसे इतिहास की बहुत बड़ी हानि भी नहीं होती । एक बात इस बड़े नाटक में खटकती है-उदयसिंह की माँ कर्मवती का अभाव । शीतल सेनी के विषय में भी इतिहास मौन है, पर इससे नाटक में बहुत जान आ गई है-नारी-चरित्र का यह बहुत सबल रूप है । कल्पित घटनाए या चरित्र इतिहास का अधिक विरोध नहीं करते।
'अन्तःपुर का छिद्र' में पूर्ण ऐतिहासिकता का निर्वाह किया गया है। वत्सराज उदयन की दो रानियाँ थीं-पद्मावती और मागंधी या मागंधिनि । दोनों में परस्पर बड़ी स्पर्धा थी। बौद्ध-इतिहास उन दोनों के संघर्ष का साक्षी है। देवदत्त गौतम का प्रतिस्पर्धी था। वह काशी, कौशाम्बी, मगध आदि में गौतम के प्रभाव को कम करने का जी-जान से प्रयत्न करता रहता था। पद्मावती बुद्ध की उपासिका थी और मागंधी देवदत्त की। मागंधी राजमहल में भी गौतम का प्रभाव कम करने, पद्मावती को नीचा दिखाने और उसे हानि पहुँचाने की सतत चेष्टा करती रहती थी। वत्सराज उदयन पद्मावती को अधिक प्रेम करता था। वह अपने समय का बहुत प्रभावशाली राजा और प्रसिद्ध कलाकार था। मागंधी ने पद्मावती के विरुद्ध अनेक षड्यन्त्र रचे, पर वे सभी निष्फल गये। एक बार देवदत्त जब कौशाम्बी की ओर आ रहा था, एक तालाब में पानी पीने के लिए घुसते हुए उसकी मृत्यु हो गई। मागंधी अपने षड्यन्त्रों में निष्फल रही और देवदत्त की मृत्यु से वह निराश हो गई। __ वत्सराज को लेकर हिन्दो में कई नाटक लिखे गए । सभी में पद्मावती
और मागंधी के संघर्ष की ओर थोड़ा-बहुत संकेत है । 'अजातशत्रु' (प्रसाद) 'वत्सराज' (लक्ष्मीनारायण मिश्र) में वत्सराज उदयन के चरित्र और प्रभाव का चित्र उपस्थित किया गया है। 'अन्तःपुर का छिद्र' के पात्र--उदयन पद्मावती, मागंधिनी, अमिताभ-ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। अंत में उदयन भी बौद्ध धर्मावलम्बी हो गया था, यह भी प्राचीय इतिहास में मिलता है, जो इस नाटक में दिखाया गया है। हाँ, मागंधिनी की मृत्यु कैसे हुई, इसका कम पता चलता है।
। समाज की समस्या पन्तजी ने विस्तृत जीवन-क्षेत्र और विभिन्न ऐतिहापिक काल के नाटक लिखे । वर्तमान जीवन-क्षेत्र से जो कथानक और चरित्र पन्त जी ने लिये