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गोविन्दवल्लभ पन्त
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रहती+वह सीधे और सरल मार्ग पर तीव्र गति से बहती चलती है। पन्त जी पर हिन्दी-नाटककारों का प्रभाव भले ही न पड़ा हो, पर पारसीकम्पनियों के रंगमंची नाटकों का थोड़ा बहुत प्रभाव अवश्य पड़ा मालूम होता है। फिर भी उनके नाटकों में उनकी अपनी मौलिकता है और अपने ढंग पर उनका विकास हुआ है । उनके नाटकों का रचना-क्रम इस प्रकार है:
रचनाओं का काल-क्रम कंजस की खोपड़ी
१६२३ वरमाला
१९२५ राज-मुकुट
१६३५ अङ्गर की बेटी अन्तःपुरका छिद्र सिन्दूर-बिन्दी
अज्ञात ययाति
इतिहास और कल्पना . 'राज-मुकुट' और 'अन्तःपुर का छिद्र' दोनों नाटक ऐतिहासिक नाटक हैं । 'राज-मुकुट' में महाराणा साँगा के पुत्र मेवाड़ के होने वाले राणा उदयसिंह की धाय पन्ना के त्याग की कहानी है। पन्ना धाय ने बनवीर के हिंसक हाथों से अपने एक-मात्र पुत्र का वध करा लिया और उदयसिंह. की रक्षा की। यह कहानी राजस्थानियों ही नहीं समस्त भारतीयों की वाणी पर है- भारत-प्रसिद्ध है : 'टाड का राजस्थान' में भी यही कथा दी गई है। बनवीर के अत्याचार और उसकी हत्यारी महत्त्वाकांक्षा, उसके अनाचार और प्रजा-पीड़न की कहानियाँ भी राजस्थान जानता है। पन्ना, विक्रम, बनवीर
और उदयसिंह-सभी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पात्र हैं। विक्रम और उदयसिंह भाई थे, विक्रम साँगा की छोटी रानी जवाहरबाई से उत्पन्न हुए थे और उदयसिंह बड़ी रानी कर्मवती से । उदय सिंह बालक था, इसलिए विक्रमसिंह को ही राणा बना दिया गया था। उसका विलास और कायरता भी इतिहास की जानकारी में है। 'प्रेमी जी के "रक्षा-बन्धन' में भी विक्रम
और उदय सिंह-दोनों हैं। विक्रम के सिंहासन च्युत होने की घटना भी 'रक्षा-बन्धन' में है
पर विक्रम तथा कर्मचन्द्र का बनवीर द्वारा वध, उदयसिंह का बहादुरसिंह द्वारा पकड़ा जाना, बलिदान कर काली को भेंट करने