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________________ [ हिन्दी जैन साहित्य का उसका अन्तिम पद्य 'मेघकुमारकथानक' भी अपूर्ण है। अवशेष नहीं है। प्रारंभ के पंद्रह छंद हैं, जिनके नमूने देखिये ७४ "वीर जिणंद समोसरि जी, वंदइ मेघकुमार; सुणि देसण वयरागियो जी, इहु संसार-असारु; री मइड़ी ॥१॥ अनुमति देहु मुझ आज; संजम श्री सिउकाजरी । माई अनुम०, व किं इ तू भोलविउ रे, श्रेणिक तात नरेस, आंचली काइ अणउ किं ण दूहविउरे, हंउ नवि देवं आदेउ आदेस रे जाय ॥२॥ संजम विषम अपार, आदि निगोदि जिहा रुलिउरी, सहिया दुक्ख अनंत, सास उसास भव पूरियो री, अजउ न पायो अंतरी माई, अनुम० ॥३॥" इस प्रकार माता और पुत्र में संसार की असारता पर प्रश्नोत्तर होते हैं, जो वैराग्यभावना जागृत करते हैं। जब माँ की अपनी बात नहीं चलती, तो वह उनकी स्त्रियों की बात आगे लाकर कहती है "मृगनयणी आठइ रहरे, नयणहि नीर प्रवाह; भरि जोवन छोरू नहीं रे मूकिन पूत अनाहरे जाया, संजम० ॥१४॥” किन्तु मेघकुमार के मन में वैराग्य ने गहरा रंग जमाया था, अतः युवती पत्नियों का सौन्दर्य भी उनके मन को वैराग्य से मोड़ न सका । अन्त में दिल थाम कर माता पुत्र को दीक्षा लेने की आज्ञा देती है 'तणु तूटइ लोयण' झरइरे, दुष न हियइ समाइ । होहु सुषी वंछति तुम करउ रे, उनमति' दीनी माइरे जाया । " 'गर्भविचारस्तोत्र' अट्ठाइस छंदों में समाप्त हुआ है । वैसे यह स्तोत्र श्री ऋषभनाथजी को लक्ष्य करके लिखा गया हैं, परंतु १. लोचन । २. अनुमति ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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