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________________ संक्षिप्त इतिहास] नथे। हिन्दुओं ने ही मुख्यतः निर्गुण पन्थ को चलाया था। इसके प्रत्युत्तर स्वरूप मुसलमान सूफी कवियों की ओर से प्रेममार्गी शाखा का जन्म हुआ। इन कवियों के काव्य की विचार. धारा भारतीय वेदान्त के निकट थी। इस प्रकार हिन्दी-साहित्यसंसार में एक नया परिवर्तन उपस्थित हुआ । निर्गुणपंथ में कबीर, नानक, दादूदयाल, सुन्दरदास आदि सन्त-कवि उल्लेखनीय हैं । प्रेममार्गी शाखा को सुशोभित करनेवाले सूफी कवि कुतबन, मंशन, मलिक मुहम्मद जायसी, उस्मान आदि हुए। ____ भारत के इस परिवर्तन-प्रभाव से जैनी अछूते न रहे,-व भी यहाँ के निवासी थे और अपने पड़ोसियों से पृथक् नहीं रह सकते थे। जैन जगत् में इस परिवर्तन की प्रक्रिया सर्वाङ्गीण हुई; किन्तु हमें यहाँ पर साहित्यिक-संक्रमण देखनो अभीष्ट है। यह पहले ही लिखा जा चुका है कि जैन साहित्य प्रारंभ से ही धर्मप्रधान रहा है । अतएव यह युगकालीन परिवर्तन उसके लिए अनूठा नहीं था। यद्यपि चरित्र-ग्रन्थ लिखने की पूर्व-प्रचलित शैली इस समय भी विद्यमान रही, परन्तु तात्त्विक साहित्य भी पर्याप्त मात्रा में रचा गया। कविवर बनारसीदासजी तात्त्विक साहित्य के निर्माण करनेवालों में प्रमुख विद्वान् हैं । उनकी रचनायें अध्यात्म और वेदान्त का रसास्वादन करने के लिए अपूर्व हैं। अध्यात्मवाद के उपासक बनकर लोग व्यावहारिक मतभेद को भुलाने का उद्योग करते थे। मूलतः सब ही जन जीव-मात्र में परमज्योति परमात्मा की झलक को चमकती हुई देखते थे। जैन कवि ने स्पष्ट कहा था
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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