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संक्षित इतिहास]
भाषा के ही अनेक प्रान्तीय रूप हैं। उनमें परस्पर कोई ऐसा मौलिक भेद नहीं है जो उन्हें एक दूसरे से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के समान भिन्न प्रकट करे। देश के भिन्न भिन्न प्रान्त के लोग अपने अपने ढंग से प्राकृत को बोलते थे। मालूम होता है कि उनके बोलने के ढंग से ही प्राकृत भाषा के उपर्युल्लिखित देशभेद अस्तित्व में आये। जब भगवान महावीर ने अपना धर्मोपदेश देना प्रारंभ किया और म० बुद्ध ने अपना मत प्रचलित किया, तब इन दोनों महापुरुषों ने प्राकृत भाषा को अपनाया । भगवान महावीर की वाणी अर्द्धमागधी प्राकृत भाषा में ग्रन्थबद्ध की गई और बुद्धदेव के उपदेश पाली प्राकृत में लिखे गये। इस प्रकार जैन तीर्थकर और बौद्धधर्म प्रवर्तक का आश्रय पाकर प्राकृत भाषा देश की राष्ट्रभाषा हो गई। सम्राट अशोक ने अपने राजशासन और धर्मलेख प्राकृत भाषा में ही लिखाये थे। कुछ ऐसा ज्ञात होता है कि अशोक के समय तक साहित्यिक प्राकृत भाषा बोलचाल की प्राकृत भाषा से दूर भटक गई थी और उसमें उतना मेल नहीं रह गया था। परिणामतः इसी समय के लगभग साहित्यिक प्राकृत को जनसाधारण के लिये बोधप्रद बनाने के उद्देश्य से उसका संस्कार किया गया। इस प्रकार जिस प्राकृत भाषा का जन्म हुआ वह उपरान्त अपभ्रंश प्राकृत कहलाई। इस अपभ्रंश प्राकृत भाषा का व्याकरण जैन कवि चण्ड के व्याकरण ग्रन्थ में देखने को मिलता है और विद्वानों का अनुमान है कि उसका सादृश्य अशोक के सहबाजगढ़ी और सासाराम के धर्मलेखों की भाषा से है। अतः उसके जन्मकाल का उक्त प्रकार से अनुमान करना अप्रासंगिक नहीं है।