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संक्षिप्त इतिहास यूरोप में 'अलफलैला' या 'ईसपकी कहानियाँ' रूप में जो कथासाहित्य प्रचलित है उसका भी उद्गमस्रोत जैनियों का कथासाहित्य है। हिन्दी जैन साहित्य में 'पंचतंत्राख्यान टीका' 'सिंहासनबत्तीसी' आदि ग्रंथ उल्लेखनीय और लोकरंजन के साथ ही शिक्षाप्रद हैं। हिन्दी में जैनियों द्वारा रचे गये ज्योतिषशास्त्र और गणितशास्त्र भी अपूर्व हैं। 'धवलाटीका', 'त्रिलोकसारटीका', 'गोम्मटसारटीका' आदि ग्रंथों में उच्चकोटिका गणित मौजूद है। विश्व को भारत से ही यह शास्त्र मिले और इस विषय के जैन ग्रंथों में कतिपय गणित तो मौलिक और अश्रुतपूर्व हैं। हिन्दी अवश्यमेव होगी। हिन्दी का तो यह सर्वप्रथम आत्मचरित है ही, पर अन्य भारतीय भाषाओं में इस प्रकार की और इतनी पुरानी पुस्तक मिलना आसान नहीं ।" - श्री पं० बनारसीदासजी चतुर्वेदी ।
9. Characteristic of Indian narrative art are the narrtives of the Jains" :-Dr. Hoernle. 'कलामय भारतीय कथासाहित्य का मुख्य लक्षणात्मक अंश जैनियों का कथा साहित्य है।"
-डॉ० हॉर्नले। २. “यथार्थतः गणित और ज्योतिष विद्या का शान जैनमुनियों की एक मुख्य साधना समझी जाती थी। "महावीराचार्य का गणितसार संग्रह ग्रंथ सामान्य रूपरेखा में ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य भास्कर और अन्य हिन्दू गणितज्ञों के ग्रन्थों के समान होते हुए भी विशेष बातों में उनसे पूर्णतः भिन्न है। उदाहरणार्थ--गणितसारसंग्रह के प्रश्न ( problems) प्रायः सभी दूसरे प्रन्यों के प्रश्नों से भिन्न हैं। .... 'धवला में वर्णित अनेक प्रक्रियायें किसी भी अन्य ज्ञात ग्रन्थ में नहीं पाई जाती, तथा इसमें कुछ ऐसी स्थलता का आभास भी है जिसकी झलक पश्चात् के भारतीय गणित शाब से परिचित विद्वानों को सरलता से मिल सकता है।"-प्रो. डॉ. अवधेशनारायण सिंह।