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कवि राजमल्ल पाण्डे कृत पिङ्गाल के उद्धरण "कर कमला विमला मुखवाणी, जयलछी भछी अनिवाणी। भारहमल्ल सया सनमानी, कीरति सात समुहहजाणी ॥ पाइक छंदं णाए संभणं, भगण कणो कणो सगणं । कामिणि मोहं णामंतरयं, भूपति कित्ती मित्ती परयं ॥ ६६ ।। भूप समानं मानं महियं, कित्तिनिदानं दानं अहियं । पूरण लछी अछी निलयं, भारहमल्लं उध्वीतिलयं ॥ ६७ ॥ इय सिंहयलोयण छंदु भणं, कल सोलह दियवर गण सगणं । दिव देव तनय जसु वित्थरिए, दुखु दारिद वारिधि उत्तरिए ॥ ६८ ॥ जगतीतल दत्तवलयरचरणं, जगती जनमनवहर घण करणं । जग तीरथ भारह मल चरियं, जग सुरजतीरुह अवतरियं ॥ ६९ ॥ छंद अडिल्लह मत्त भणिजइ, चउकल चारि जगण चविजइ । चउपय चारि जम कुस लहिजइ, भूपति भारहमल्ल पढिज्जइ ॥ ७० ॥ कीरति मुत्ताहल रयणायरू, पिशुन महीधर बूंद भिदायरू । सरणागयज्जनघन सरणायरु, भूपति भारहमल्ल दिवायरु ॥ ७॥ छंद मडिल्ल अडिल्ल विसेसइ, सव्व पयंत भकार विशेस । दुदल दुप्पय दोइज मुकइ, भूपति दान महीप चमकह ॥ ७२ ॥ तो मुख चंद मयूष सुधारा, चक्र चकोर कविंद अधारा । देव सरोवर वर अरविंदं, भूपति भारहमल्ल नरिंदं ॥ ३ ॥ बंधु भणिज्जइ छंदुर वणा, तिणि भकार पयंतह कणा । भूपति भारहमल्ल पढिजइ, दिग्ध दरिद्र जलंजलि दिजइ ॥ ७४ ॥ देव महीधर उदय चंदा, रोरु तमो रिपुद णिकंदा। लछि बधू कुर कंदुक जेहा, भारहमल्ल जगजस रेहा ॥ ७५॥