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________________ [ हिन्दी जैन साहित्य का और उसे आत्म स्वातन्त्र्य-लाभ कराता है। जैन साहित्य से व्यक्ति को अपने भाग्य का स्वयं निर्माण और निर्णय करने के लिये प्रोत्साहन मिलता है । वह व्यक्ति को अथवा समष्टि को परमुखापेक्षी और परावलम्बी बनाने का उपदेश नहीं देता । उसका संदेश स्वावलम्बन का सन्देश है। वह मानव बुद्धि में गुलामी की बू नहीं आने देता । वह नहीं कहता कि तुम्हारे ऊपर एक ईश्वर है जो 'तुम पर नियन्त्रण करता है और तुम्हें मनमाने नाच नचाता है। जैन साहित्य बताता है कि प्रत्येक जीव कर्म करने और कर्मफल भोगने में स्वतन्त्र है । व्यक्ति जैसा चाहे वैसा अपने को बना ले । जो आम बोयेगा वह मीठा फल पायेगा और जो करीर बोयेगा वह काँटों में उलझेगा । इस लिये इन्द्रियों को अपने आधीन रखते हुये न्याय पूर्वक जीवन यापन करने का सत्परामर्श जैन साहित्य की अपनी विशेषता है । जो तुम्हें स्वयं अप्रिय है, वह समझो दूसरे को भी अप्रिय है । अत एव जैन साहित्य का सन्देश है कि स्वाधीन होकर जिओ और अन्यों को जीने दो, बल्कि उनको सुखी जीवन बिताने में सहायक बनो, यह है जैन साहित्य की विचार मरणी और उसकी अपनी विशेषता । 1 साथ ही हिन्दी जैन साहित्य का अध्ययन व्यक्ति के हृदय को उदार और विशाल बनाने में कारणभूत है, वह मानव को संकुचित साम्प्रदायिकता की संकीर्ण गली में नहीं ले जाता, बल्कि उसे सत्य के राजपथ पर ले जाकर उन्नतमना बनाता है । इसी लिये जैन कवि कहते हैं कि "जग के विवाद नासिवे को जिन भागम है, जामें स्याद्वाद लक्षन सुहायो है ।”
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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