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[हिन्दी जैन साहित्य का (१) सम्यन्ही कहा (क्या?) सो सुनो। (२) सूर्य के प्रकाश विना अंध पुरुष संकीर्ण मार्ग विष पारे में परै। (१) राजाहू यासौं दुराव न करे। (४) सर्व जगत की सामग्री चैतन्य सुभाव विना जडत्व सुभाव ने धरे
फीको जैसे लून विना जलौनी रोटी फीकी । (५) जैसे जोग का उपादान जोग है........'मान है। (६) जैसी है तैसी ही निरूपित हैं। (७) कर्मसहित संसारी है।
इस प्रकार परिवर्तनकाल की साहित्य प्रगति का सिंहावलोकन हमें नवीन युग के द्वार पर पहुँचा देता है। हम देख चुके हैं कि इस काल में किस प्रकार न केवल कविता में ही बल्कि गद्य शैली में भी समुचित सुधार हुआ-नवीन युग की प्रगति के लिये इस काल के साहित्यकारों ने उपयुक्त क्षेत्र तैयार कर दिया। अतः इस प्रकरण के साथ हमारे इतिहास के पूर्व युग का वर्णन समाप्त होता है। इसके उत्तर खंड में नवयुग के साहित्य का इतिहास लिया जायगा, जिससे उदीयमान प्रगति का बोध पाठकों को होगा।
इति शम्।