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________________ [ हिन्दी चैन साहित्य का देवीसिंहजी x नरवर - निवासी थे । उन्होंने सं० १७९६ में 'उपदेशसिद्धान्त रत्नमाला' छन्दोबद्ध रची थी। जीवराज - बढ़नगर x निवासी ने सं० १७६२ में 'परमात्मप्रकाशवचनिका' लिखी थी । ताराचंद कृत x ज्ञानार्णव छन्दोबद्ध है (सं० १७२८ ) । विनोदीलालजी सहजादिपुर के निवासी थे। उन्होंने दिल्ली में आकर 'भक्तामरकथा' (१७४७) और 'सम्यक्त्वकौमुदी' छन्दोबद्ध (१७४९ ) की रचना की थी। उनकी और भी फुटकर रचनाएँ हैं । पं० बखतराम + चाटसूँ-निवासी ने सं० १८०० में जयपुर में 'धर्म्मबुद्धि की कथा' एवं 'मिथ्यात्वखंडनवचनिका' बनाई थीं । पं० भैरौदासजी ने सं० १७९१ में 'सोलहककारणव्रतकथा' रची थी। इसके अगले वर्ष उन्होंने 'सुगन्धदशमीकथा' रची थी । कवि मकरंद पद्मावती पुरवाल की रची हुई भी एक 'सुगन्धदशमीकथा' है। १८२ बुलाकीचंद ॐ कृत 'बच्चनकोष' (१७३७) है। रामसागर ने 'रत्नपरीक्षा' रची है। पन्नालालजी जयपुर के निवासी थे। उनके समय में माधवसिंह नरेश का शासन था । उस समय जयपुर में सेठ चांदमलजी प्रसिद्ध थे, जिनके पुत्र फूलचन्दजी थे । इन फूलचन्दजी के कहने से ही कवि ने 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' का पद्यानुवाद किया था। इसकी एक प्रति पंचायती मन्दिर दिल्ली में ( नं० इ ६ ) है। दिल्ली के x हि० जे० सा० इ० . ० ६८-७१ । + मां० ० ० ना०, पृ० ४०७ । * अनेकान्त, वर्ष ४ अंक ७, ८, ९ व १० देखो •
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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