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________________ (१४ ) दी । पाठक यह जान कर प्रसन्न होंगे कि उपर्युक्त प्रतियोगिता में यह निबन्ध परीक्षकों द्वारा मान्य हुश्रा और इसके उपलक्ष में लेखक को रजत पदक का पुरस्कार दिया गया। रजिस्ट्रार महोदय ने इसकी मूल पांडुलिपि भी हमको भेज देने की कृपा की; क्योंकि विद्याभवन काग़ज़ के प्रभाव के कारण इसे शीघ्र प्रकाशित करने में असमर्थ था। अन्त में हम श्रीमान् डॉ. वासुदेवशरण जी अग्रवाल एम.ए., डी.लिट्, के विशेष रूप से उपकृत हैं जिन्होने इसकी भूमिका लिख देने की कृपा की है। साथ ही हम श्री पं० महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य, व्यवस्थापक, भारतीय ज्ञानपीठ काशी को नहीं भुला सकते। प्रस्तुत पुस्तक उन्हीं के प्रयास से इतनी जल्दी प्रकाश में आ रही है। एतदर्थ हम उनके अत्यन्त कृतश हैं । इस अवसर पर मास्टर उग्रसेन जी, ( मंत्री, अ० भा० दि० जैन परिषद् परीक्षा बोर्ड, दिल्ली) भी हमें याद आ रहे हैं। उन्होंने प्रस्तुत पुस्तक को परिषद-परीक्षालय के पाठ्यक्रम में स्थान देकर इसका पचार सहज साध्य किया है। अलीगंज (एटा), 1 नवम्बर, १९॥ विनीतकामता प्रसाद जैन
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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