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________________ परिवर्तनकाल ( अठारहवीं से उन्नीसवीं शताब्दि तक ) मध्यकाल में हिन्दी-जैन-साहित्य-गगन में कविवर बनारसी. दासजी और कवि राजचन्द्र सहश सूर्य और शशि चमके थे, जिन्होंने हिन्दी-साहित्य-संसार को वह अनूठी कृतियाँ प्रदान की जो लोक-साहित्य में अद्वितीय हैं । मध्यकाल में 'समयसार नाटक' 'अध्यात्मगीत' आदि तात्त्विक और आध्यात्मिक रचनाओं के साथ साथ चरित्रात्मक रचनायें भी सिरजी गई, जिनसे जनता का मनोरंजन और उपकार हुआ। किन्तु सत्रहवीं शताब्दि के उपरांत हर हिन्दी-जैन साहित्य-जगन में न केवल भाषाशैली का परिवर्तन हाता पाते हैं, प्रत्युत साहित्य की प्रगति को अनुरंजित करने में मुख्य कारण कवि-भावना को भी बदलता हुआ पाते हैं। इमलिए ही हमने इस काल का नामकरण 'परिवर्तन-काल' किया है। इस काल के प्रारम्भ में कविगण अपभ्रंश प्राकृत मिश्रित भापा के साथ साथ ब्रजभाषा अथवा पुरानी हिन्दी में रचना करते हुए मिलते हैं। किन्तु समयानुसार पुरानी हिन्दी को हम बदलना हुआ पाते हैं ! मुसलमानी गजदरबार और लश्कर में हिन्दी अपनाई गई और इसका प्रभाव हिन्दी पर यह हुआ कि उममें फारसी शब्दों की मात्रा बढ़ गई और मुकुमारता आ गई। कविवर बनारसीदासजी की काव्य-भाषा भी इस प्रभाव से रिक्त नहीं है। बल्कि कहना चाहिये कि उन्होंने ही म्यड़ी बोली के प्रयोग का श्रीगणेश हिन्दी-जैन-साहित्य में कर दिया था। श्रीयुन.
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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