________________
संचित इतिहास
८१
वसुंधराधिराज राजपूत नेजवाज, गाज राइ धाइ धाइ आइ पाइहू लगाइए। भारमल्ल कर सपूतु दान मान पम्ग जुतु, इंद्र के प्रताप इंद्रसाहि जू
___ बढ़ाइए ॥१४॥ यह मिश्र भाषा हिन्दी के बहुत निकट आती है, परन्तु निम्न लिखित छन्द तो निरे अपभ्रंश प्राकृत के ही दिखते हैं :
"गाहो गाह विगाहो, उग्गाहो साहिणायखंघम्हि, छम्विहग्गाहा भेउ, पयासिऊ पिंगलायरिहिं ॥ १५ ॥ गाहाणं वीयदलं, पुम्वद्धे होदिय छ ।
एसो गाहो भणिदो, कित्ती भण भारमल्लस्य ॥ १५॥" इस पिंगलशास्त्र को जिन नृप भारामल्ल के लिये कवि ने रचा था, वह श्रीमालवंश के प्रतापी श्रावक-रत्न थे। वह नागौर देशके संघाधिपति थे और बादशाह अकबर के समान ही सार्कभरी (साँभर ) के शासनाधिकारी थे। निम्नलिखित छन्द में कवि यही बताते हैं:
"नागौरदेसम्हि संघाधिनाथो सिरीमाल, राक्याणिवंसि सिरी भारामल्लो महीपाल । साकुंभरी नाथ थप्यो सिरी साहि समाणि,
राजाधिराजोवमा चावडी महादाणि ॥ १६९॥" मारामल्लजी दानवीर के साथ युद्धवीर भी थे; यह भी पाठक देखिये
"दंति निकट वाजि विकट, जोहधिकट कुप्पियं, सिंधुसरणि धूलि तरणि लुप्पियं । खग चमक भुम्मि दमक सह गमक वजियं, मह भणय लच्छितनय देवतन्य सब्जियं ॥ १९६ ॥"
w