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हिन्दी जैन मक्ति-काव्य और कवि et free- free विभूतियाँ साबित होती है । कविताने और भक्तिने अपनी निष्ठा जीवनदेवताको हो अर्पण की है । इसीमें उनकी कृतार्थता है ।
श्री प्रेमसागरजीने गहरे संशोधनके बाद पूरी विद्वत्ता के साथ यह ग्रन्थ लिखा है । उसके लिए वे सबके धन्यवादके अधिकारी है । हम आशा करते है कि अब वे इस सारे महाप्रयास के फलस्वरूप जैन भक्ति-काव्यका स्वादिष्ट और पौष्टिक मक्खन निकालकर आजकी भाषामे भेंटके स्वरूप देंगे ।
सन्निधि राजघाट
२३ जनवरी, १६६४
- काका कालेलकर