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________________ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि विष्णु और जिनेन्द्र दोनों ही ने 'चरन गहे की लाज' का निर्वाह किया है। सूरदासने लिखा है, "जो हम भले बुरे तो तेरे ? तुम्हें हमारी लाज बड़ाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे ॥' कवि द्यानतरायका भी कथन है कि हम तुम्हारे भक्त है, हमारी चरन गहे की लाज निबाहो, "जाके केवलज्ञान विराजत, लोकालोक प्रकाशन हारा । चरन गहे की लाज निबाहो, प्रभु जी द्यानत भगत तुम्हारा ॥" उपालम्भ अनेक भक्त कवियोंने भगवान्को उपालम्भ भी दिये है। दिन और रात स्वामीके पास रहते-रहते जिस प्रकार सेवककी धड़क खुल जाती है, उसी भांति प्रभुके सतत ध्यानसे जो सान्निध्यकी अनुभूति भक्तके हृदयमें उत्पन्न होती है, उसके कारण वह कभी-कभी मीठा उपालम्भ भो देता है । तुलसोने एक पदमे लिखा है कि-हे भगवन् ! मुझे क्यों विस्मरण कर दिया है। आप अपनी महिमा और मेरे पापोको जानते है, फिर भी मेरी सम्हाल क्यों नहीं करते । पहले तो मुझे खग, गनिका और व्याधकी पक्तिमे बैठा दिया, फिर परसी हुई कृपाकी पत्तल फाड़ क्यों डाली ? मुझे नरकमे जानेका भय नहीं है, दुःख तो इसका है कि आपका नाम भी पाप न जला सका, "काहे ते हरि ! मोहि बिसारो। जानत निज महिमा, मेरे अघ, तदपि न नाथ संभारो॥ खग-गनिका-गज-व्याध-पांति जहं, तहं हौं हूं बैठारो । अब केहि लाज कृपा निधान, परसत पनवारो फारो ॥ नाहिन नरक परत मोकहं डर, जद्यपि हौं अति हारो। यह बड़ त्रास दास तुलसी प्रभु, नामहु पाप न जारो ॥" जैन कवि द्यानतरायका स्वर भी तुलसीसे मिलता-जुलता ही है । उन्होंने लिखा है कि - हे भगवन् ! मेरे समय ढील क्यों कर रखी है। तुमने सेठ सुदर्शनको विपत्तिका अपहरण किया, सती सीताके लिए अग्निके स्थानपर जल कर दिया । इसी भांति तुमने वारिषेण, श्रीपाल और सोमापर भी दया की। फिर मुझे तारते समय ही देर क्यों कर रहे है, १. सूरसागर, प्रथम स्कन्ध, १३०वाँ पद, पृ० ४३ । २. धानतपदसंग्रह, २६वाँ पद, पृ० १३।। ३. विनयपत्रिका, पूर्वाद्ध, १४वॉ पद, पृ० १८० ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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