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जैन भक्ति-कान्यका कला-पक्ष
"नीर अगाध नदी नित बहैं । जलचर जीव जहाँ नित हैं । मुनि जन भूषित जिनके तीर । का उसग्ग धरि ठाड़े धीर ॥ ऊँचे परवत झरना झएँ । मारम जात पथिक मन हरॆ ॥ जिनमें सदा कन्दरा थान । निहचल देह धरै मुनि ध्यान ॥"
श्री द्यानतरायने नन्दीश्वर द्वीपकी प्राकृतिक शोभाका भी ऐसा ही चित्रण किया है, जिससे शान्तभाव और अधिक पुष्ट होता है। वह पद्य इस प्रकार है,
"एक इक चार दिशि चार शुम बावरी । एक इक लाख जोजन अमल जलमरी ॥ चहुं दिशि चार वन लाख जोजन वरं। मौंन बावन्न प्रतिमा नमों सुखकरं ।"
१. भूधरदास, पार्श्वपुराण, कलकत्ता, पंचमोऽधिकारः, पृ० ४१।। २. यानतराय, नन्दीश्वरदीप-पूजा, जयमाला, पद्य ३-५, बृहज्जिनवाणी संग्रह,
१९५६ ई०, पृ० ४१७।