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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
शुभ भाग्यसे उन भगवान् के दर्शन हो पाते है । अनेक श्रावक वहाँ आते हैं और अपने अशुभ कर्मोको काट डालते है । अजयराज भी मन, वचन, कर्मसे पूजन करते है | नित्य प्रति उस मूर्त्तिकी वन्दना करनेसे यह जीव इस भव-समुद्रसे पार हो सकता है,
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"जाकै भाग उदै सुभ होइ, करि दरसण हरषै मेंट सोई । आ जावै सरावग घणा, काटै कर्म सबै आपणां ॥
राज वहाँ पूजा करई, मन वच तन अति हरष धरई । for प्रति बन्दै ते बारम्बार, तारण तरण कहै भव पार ||