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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
" सारद वणी सेवा मन धरौ, जा प्रसाद कवित्त ऊचरौ, मूरष तै पंडित पद होई, ता कारणी सेवै सब कोई, छह दरसण मुषी भेडन साण ॥
वरह गलगज मोती हार, गलै पाटी यौ सोचनं सरीर
कानां कुंडल रतनं जडी, सीस मोगी मोत्या झलमलै ॥
चरण नेवर रुणझुण करै, हंस चढ़ी कर वीण ह सुरत दुधी महाफल देह, सारद नवणी कर बहु भाई || " पार्श्वनाथ कथा
यह
भी एक पद्य बद्ध काव्य है । इसमें भगवान् पार्श्वनाथका जीवन चरित्र दिया हुआ है । यह जयपुरके बड़े मन्दिरके गुटका नं० १६५ में निबद्ध है । पुष्पदन्त-पूजा
इस पूजाका उल्लेख 'काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका' के पन्द्रहवें वार्षिक विवरणके 'Appendix II' में, पृष्ठ ८९ पर हुआ है । सम्पादकोंको इसकी प्रति किरावली, आगराके जैन मन्दिरसे प्राप्त हुई थी। इसमें ६७२ अनुष्टुप् छन्द हैं + जैनोंके नौवें तीर्थंकर पुष्पदन्तकी पूजा की गयी है । इसका आदि और
अन्त देखिए,
आदि
अन्त
"अगर अवर धूप चन्दन घेवो भविजन लाय । देखे सुर ष आनि कौतिग डाय मेरु सुदर्शन ॥ धूपं नालिकेर दाम पिता पूगी फल दे आदि । चढ़ाइए जिन चरन आगे मोषक लडत पादि ॥ '
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"अजर अमर सोउ जित्य भयौ, सो जिनदेव सभा को जयौ । दीन दीख्यौ रच्यौ पुरान, ओछी बुधि में कियो बखान ॥ ही अधिक जो अछिस होय, ताहि संवारौ गुनियर लाये । उत्तम नगर तिहुन पुर जानि, तहां कथा को भयो बषान ॥ " नेमिनाथरा
यह एक उत्तम कृति है । इसमें १५५ पद्य हैं। सभी चौपाई छन्दमें लिखे गये हैं । इस 'राम' का, नेमिनाथको वैराग्य लेनेवाली घटनासे सम्बन्ध है ।
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