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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
सतिवागो तप चंदन छिनको, कीरति अतर सुवासो री। सहजानन्द मीठा इ जो सु, ज्ञान अमल को प्यारीरी।। गुरु के बच्चन बजावौ बाजा, नटिनी कुमति नचावी री, मवि के चित्र कुराग तजि कैं, आतम होरी गावो री॥ अनुमौ अमृत कुं पाना चौ, निज घरि हरष बढ़ावौ री। कीर्ति सुरेन्द्र कहैं इस जग में
घेलन हार जयो जोरी ॥" पंचमास चतुर्दशी व्रतोद्यापन ___ इसकी एक प्रति जयपुरके ठोलियोंके जैनमन्दिरमे वेष्टन नं० १२९ मे निबद्ध है। इस संग्रहमें ६५४ पृष्ठ है, जिनमे ३०६ से ३११ तक यह व्रतोद्यापन लिखा हुआ है । इस संग्रहका लेखनकाल सं० १८६५ है । ज्ञान-पच्चीसी प्रतोद्यापन
यह भी उपर्युक्त संग्रहमे ही संकलित है। यह पृष्ठ ५३७ से ५४५ तक अंकित है। इसका लिपिकाल सं० १८४० दिया हुआ है। यह लिपि जयपुरके चन्द्रप्रभ चैत्यालयमे हुई थी।
७९. खेतल (वि० सं० १७१३-१७५५)
इन्होंने कवितामें अपना नाम खेता, खेतसी, खेताक और कही-कही खेतल रखा है। नन्दीसूचीके अनुसार इनका मूल नाम खेतसी था, किन्तु जब दीक्षा ली तो दयासुन्दर हो गया। खेतसी नामके कई कवि हो गये है, जिनमे-से एक तो साई शाखाके चारण कवि थे, जो जोधपुरके महाराजा अभयसिंहके आश्रयमे रहते थे। इन्होंने सं० १७८० मे 'भाषा-भारथ' नामका डिंगल भाषामें एक ग्रन्थ लिखा था। इसमें महाभारतके अठारह पर्वोका सारांश तेरह हजार छन्दोंमे