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________________ जैन मत कवि : जीवन और साहित्य यह लखि चित धर शुद्ध मुमाव । कीजे श्री जिनधर्म उपाय ॥ यथामाव जैसी गति गहै । जैसी गनि तैमा मुग्व लहै ॥१६॥" अध्यात्म पंचासिका इममे ठीक पचास पद्य है, जैसा कि इसके नामसे भी स्पष्ट है। इसको 'सम्बोध पचामिका' भी कहते है । इममे कहा गया है कि विशुद्ध आत्माके पास होते हुए भी यह जीव इधर-उधर भटकता फिरता है । भ्रमाकुलिन जीवकी दशा विविध दृष्टान्नोसे व्यक्त की गयी है। "जैसे काहू पुरुष के द्रव्य गव्यो घर माहि । उदर भरै कर मीग्व ही, ब्यौरा जानैं नाहिं ।।१३।। ता नर सों कि नहीं कहीं तू क्यौ मांग भीख । तर घर मैं निधि गड़ी, दीनी उत्तम सीख ॥१४॥" अन्य रचनाएँ द्यानतरायकृत कुछ रचनाओंकी सूचना 'राजस्थानके जैन शास्त्र भण्डारीको ग्रन्थ-सूची भाग ३'से भी प्राप्त हुई है। इसमें १०८ नामोंको गुणमाला' 'दशस्थान चौबीसी' और 'छह ढाला' प्रसिद्ध हैं। 'दशस्थान चौबीसी'में चौबीस तीर्थंकरोंके नाम, माता-पिताके नाम, ऊँचाई और आयु आदि १० बातोका वर्णन है। इसकी प्रतिलिपि मीठालाल शाह पावटावालेने जयपुरमें सं० १९४४ में की थी। ७४. विद्यासागर ( वि० सं० १७३४) ___ इनकी रचनाओंका पता अभी-अभी दूंणो', अर्थात् द्रोणपुरोके शास्त्रभण्डारको खोजते समय लगा है। वैसे तो इस भण्डारके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी संख्या १०४ ही है, किन्तु उसमे कुछ महत्त्वपूर्ण संकलन भी है। दो गुटकोमे हिन्दीकी ऐसी रचनाओका संकलन है जो अभीतक अज्ञात थो। उनमे-से पहला तो सं० १८०१ का लिखा हुआ है, और दूसरा भी इसीके आस-पासका प्रतीत होता है, क्योंकि १. वही, पृ० ६५८। २. दूणी जयपुरसे १० मील और टोंकसे ३० मीलपर अवस्थित है। यह देवली बाने वाली सडकसे लगभग २ मील दूर है। इसका प्राचीन नाम द्रोणपुरी है। इसमें तहसील है। एक हजार वर्ष पुराना विशाल जैन मन्दिर है। २२ जैन घर हैं।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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