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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि निबद्ध है । इसमें ३४ पद्य हैं और सभी भगवान् जिनेन्द्रको भक्तिसे सम्बन्धित हैं। बड़ाकक्का
इसकी एक प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके दिगम्बर जैन मन्दिरमे विराजमान गुटका नं० १२६ में मौजूद है। गुटकेका लेखनकाल सं० १७०४ आषाढ़ सुदी ५ दिया हुआ है। अक्षरमाला __इसकी प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके दिगम्बर जैन मन्दिरमें गुटका नं० ४२ में संकलित है। ५२ अक्षरों में से प्रत्येकपर एक-एक पद्य का निर्माण किया गया है। धर्मसहेली ___ इसकी भी प्रति उपर्युक्त मन्दिरके ही गुटका नं० १६२मे निबद्ध है । यह गुटकेके पृष्ठ १६३पर लिखा हुआ है। इसमे कुल २० पद्य है । इसमे जैन धर्मको महिमाका उल्लेख है।
___ इनके अनेकों पद प्राप्त है, जिनमें भगवान् जिनेन्द्रके भक्ति-रसका ही आधिक्य है। इनके दो पद जयपुरके बधोचन्दजीके मन्दिरमे विराजमान गुटका नं० १७ मे संकलित हैं । उनके शीर्षक क्रमशः, 'चेतन यो घर नाही तेरो' और 'जिय तें नरभवि यों ही खोयो' हैं। इनका तीसरा पद इसी मन्दिरके गुटकानं० २९, चौथा पद इसी मन्दिरके गुटका नं. ९६मे निबद्ध है। चौथेका शीर्षक 'अखियां आज पवित्र भई मेरी' से प्रारम्भ हुआ है। यह पद ठोलियोके जैन मन्दिरके गुटका नं० १११मे भी लिखा हुआ है। मनरामके अनेक सरस पद दि० जैन मन्दिर बड़ौतके 'पदसंग्रह' की एक हस्तलिखित प्रतिमे संकलित हैं। अतिशय क्षेत्र महावीरजी के शास्त्रभण्डारकी एक अधजली हस्तलिखित 'पदसंग्रह' को प्रतिमें भी मैंने मनरामके कतिपय पद देखे थे। गुणाक्षरमाला
इसकी एक हस्तलिखित प्रति जयपुरके ठोलियोंके दि० जैन मन्दिरमे गुटका नं० १३१में संकलित है। यह गुटका वि० सं० १७७९ मगसिर बदी ३का लिखा हुवा है । इस काव्यमें ४० पद्य है । सभीमें भगवान् जिनेन्द्रके गुणोंका वर्णन है। 'हे भाई तूने नरभव प्राप्त किया है, इसलिए भगवान् जिनेन्द्रकी भक्ति कर', ऐसे भावसे युक्त पद देखिए,
"मन वच कर या जोडि कैरे वंदौ सारद मायरे । गुण भकिस्माका कहुँ सुगौ चतर सुख पाई रे ।