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________________ ૧૮ર हिन्दी जैन भक्ति-कान्य और कवि दिया हो। यह सच है कि तुलसोका यश उनके जीवनकालमें नहीं था। इसके अतिरिक्त वे तुलसीको रामायणकी प्रशंसा पहले ही कर चुके थे। दूसरे सन्त सुन्दरदासजी हैं, जिनसे बनारसीदासको भेंट हुई थी । सुन्दरदासजीका जन्म वि० सं० १६५३ और मृत्यु वि० सं० १७४६ मे हुई। उनका रचनाकाल वि० सं० १६६४ से आरम्भ हुमा था। दोनों समकालीन थे। 'सुन्दर अन्थावली के सम्पादक पं० हरनारायण शर्माने दोनोंकी भेंट होनेकी बात लिखी है। उन्होंने यह भी लिखा है कि दोनोंमे, आपसमें पद्योंका आदान-प्रदान भी हुआ था। पं० नाथूरामजी प्रेमीने इस भेंटको सम्भव माना है।२ 'मर्द्धकथानक' में इस घटनाका भी उल्लेख नहीं है। बनारसीदास स्वयं सन्त थे और उनमें सन्त-समागमको इच्छा स्वाभाविक थी। बनारसीदासका साहित्य बनारसीदासने 'नवरस रचना', 'नाममाला', 'नाटक समयसार,' 'बनारसीविलास', 'अर्घकथानक', 'मोह विवेक युद्ध', 'मांझा' और कुछ फुटकर पदोका निर्माण किया था। बनारसोदास उत्तम कोटिके कवि थे। उनकी रचनाओंमे रसप्रवाह है और गतिशीलता भी। जोवन्त भाषा और स्वाभाविक भावोन्मेष उनका मुख्य गुण है। नवरस रचना बनारसीदासने इसको रचना वि० सं० १६५० में की थी। उस समय उनकी अवस्था १४ वर्षकी थी। रचनाका मुख्य विषय था, 'इश्क' । बनारसीदासने वि० सं० १६६२ में इस कृतिको गोमतीमें बहा दिया था। इस रचनामें एक हजार दोहा-चौपाई थे। नाम-माला इसकी रचना वि० सं० १६७० आश्विन सुदी १० को जौनपुर में हुई थी।' यह एक छोटा-सा शब्द-कोश है। इसमें १७५ दोहे हैं। यद्यपि इसका मुख्य बाधार 'धनंजय नाममाला' थी, किन्तु उसमें हिन्दो, संस्कृत और प्राकृत तीनों १. मोतीलाल मेनारिया, राजस्थनानी भाषा और साहित्य, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, वि० सं० २००८, द्वितीय संस्करण, पृ० २६३-२६५ । २. अक्वानक, भूमिका, पृष्ठ १४ ॥ ३. बनारसी नाममाला, वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली, पथ १७१-१७२ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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