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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य चतुर बनजारा इसमे ३५ पद्य हैं । यह एक रूपक काव्य है । इसमें उस जीवको चतुर बनजारा कहा है, जिसने अपने अनुभवके बलपर संसारको असार समझा है । अनेक जैन कवियोंने जीवकी उपमा बनजारेसे दी है । १६७ जनन्द गीत और राजमती नेमीसुर ढमाल 'वोर जिनिन्द गीत' में पद्य है, उनमे भगवान् महावीरकी स्तुति की गयी १.' पद्योंमें सरसता है । 'राजमती नेमीसुर ढमाल' में राजमती और नेमीसुरके प्रसिद्ध कथानकको लेकर २१ पद्योंमें लिखा गया है । डा एक आध्यात्मिक रचना है। इसमें बताया गया है कि यह जीव ज्ञानी है किन्तु अपने प्रमुख गुणोंको छोड़नेके कारण अज्ञानी बन गया है। उसका कर्तव्य है कि शुक्लध्यान धारण कर केवलज्ञान प्राप्त करे । अन्तिम पद्य देखिए, "धर्म-सुकल धरि ध्यानु अनूपम, कहि निजु केवलनाथा वे । जंपति दास भगवती पावडु, सासउ-सुहु निव्वाथा वे ॥" अनेकार्थ नाममाला यह एक कोश-ग्रन्थ हैं । इसके तीन अध्यायोंमें क्रमशः ६३, १२२ और १ दोहे हैं । अनेकार्थ शब्दोंका पद्य-बद्ध ऐसा कोश हिन्दी साहित्यको अनुपम निधि है । इसकी रचना बनारसीदासजीकी 'नाममाला के १७ वर्ष उपरान्त हुई । किन्तु इस जैसी सरसता नाममालामें नहीं है । इसका रचनाकाल वि० सं० १६८७ आषाढ़ कृष्णा तृतीया गुरुवार और रचना स्थल देहली-शहादरा माना जाता है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति पंचायती जैन मन्दिर देहलीके शास्त्र भण्डार में निबद्ध है । मृगांक लेखा चरित इसका निर्माण पं० भगवतीदासने वि० सं० १७०० अगहन शुक्ला पंचमी सोमवार के दिन हिसार नगरके वर्धमान मन्दिरमे किया था। इस ग्रन्थकी भाषा अपभ्रंश है, किन्तु उसमें हिन्दीका बहुत बड़ा अंश गर्भित है । फिर भी यह अपभ्रंशकी अन्तिम कृति मानी जाती है । इसमे चन्द्रलेखा और सागरचन्दके चरित्रका वर्णन है । अनेक विपत्तियाँ आयी किन्तु चन्द्रलेखा अपने सतीत्वपर दृढ़ रही । यह एक खण्ड-काव्य है । कथानकमे आकर्षण है ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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