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भूमिका
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रूपचन्दने कही भी अपना नाम केवल 'चन्द' के रूपमे नही दिया है । प्रत्येक स्थानपर 'रूपचन्द' ही लिखा है । 'अध्यात्म सवैया' मे कविका नाम 'चन्द' दिया है । अत: पाण्डे रूपचन्दकी कृति तो नही हो सकती । अन्तमे लिखे 'रूपचन्द लिखित कवित्त समाप्त' किसी लिपिकर्ताका कार्य भी हो सकता है । उसने 'चन्द' के आधारपर रूपचन्दका अनुमान लगा लिया होगा। दूसरे थे पं० रूपचन्द । वे बनारसीदास के अभिन्न मित्र थे । उनके साथ अध्यात्म चर्चामे तल्लीन रहते थे । उनकी रचनाएँ उपलब्ध हुई है । इन्होने भी कहीं 'चन्द' का प्रयोग नहीं किया है । 'अध्यात्म सवैया' के एक पद्यमे आभासित होता है कि उसके रचयिता लालचन्द थे । उस पद्य की अन्तिम पंक्ति है : "आलस्यो अतीत महालालचन्द लेखियै ।” लालचन्दके कुछ पद दिगम्बर जैन मन्दिर, बड़ौतके पदसंग्रह में संकलित है । वे विक्रमकी अठारहवीं शताब्दी के कवि थे । किन्तु साथ ही तेरहवें और चौदहवे सर्वयोकी अन्तिम पंक्तियोंमे 'तेज कहे' लिखा हुआ है। इनसे सिद्ध है कि किन्ही तेज नामके कविने इसका निर्माण किया था । मध्यकालीन हिन्दी काव्यमे 'तेज' नामके कोई कवि नही हुए। हो सकता है कि यह कविका उपनाम हो । किन्तु यह केवल अनुमान ही है । यदि 'तेज' उपनाम था तो दो के अतिरिक्त अन्य पद्योमे उसका प्रयोग क्यो नही हुआ । त्रिभुवनचन्द नामके कवि हुए है, जिन्होंने प्रायः अपने नामके अन्त में 'चन्द' का प्रयोग किया है । किन्तु इसी आधारपर इसे त्रिभुवनचन्दकी कृति मान लेना युक्ति-संगत नहीं है । यह भी स्पष्ट है कि त्रिभुवनचन्द अध्यात्मवादी नहीं थे । इस भाँति 'अध्यात्म सवैया' के रचयिताको लेकर एक उलझन है । मेरा मत है कि जबतक इस कृति - की तीन-चार प्रतियाँ विभिन्न भण्डारोंमे उपलब्ध नही हो जाती, विचारक किसी सही निर्णयपर नही पहुँच सकते ।
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मध्यकालीन जैनभक्त कवि 'निर्गुनिए संतो' की भाँति कोरे नहीं थे । उन्होने विधिवत् शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी । इसी कारण प्रारम्भसे अन्त तक उनमे एक ऐसी शालीनता के दर्शन होते है, जिसके परिप्रेक्ष्यमे उनकी मस्ती भी सुशोभन प्रतीत होती है। उनमे वह अक्खड़ता और कड़वाहट नहीं है, जो कबीरमे थी । पोथी पढ़नेवाला पण्डित भले ही न हो पाता हो, किन्तु उसमे ग्राम्यदोषका नितान्त परिहार हो जाता है, यह सच है ।
जैन कवियोकी शिक्षाके भिन्न-भिन्न साधन थे । श्वेताम्बर आचार्य, होनहार बालकोंको बचपनमे ही दीक्षा देकर अपने साधुसंघ में शामिल कर लेते थे । वहाँपर ही उनकी प्रारम्भसे लेकर उच्चकोटि तककी शिक्षा होती थी ।