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________________ १३५ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य ३८. कवि परिमल्ल (वि० सं० १६५१ ) कवि परिमल्लकी कुल-परम्परा इस प्रकार है : चौधरी चन्दन, रामदास, आसकरन । परिमल्ल भासकरनके पुत्र थे। चौधरी चन्दनका ग्वालियरके राजा मानके दरबारमे अत्यधिक आदर-सम्मान होता था। रामदास और आसकरनने उस ख्यातिको सुरक्षित रखा। कवि परिमल्लका जन्म ग्वालियरमे ही हुआ था, किन्तु वे आगरामे रहते थे। ग्वालियरमे मानसिक कष्ट रहने के कारण उन्होने आगराको अपनो निवास स्थान बनाया था, जैसा कि 'बसै आगरे मे तजि सल्लु' से स्पष्ट है, "ता आगै चंदन चौधरी, कोरति सब जग में विस्तरी ।। जाति वरहिया गुन गंभीर । अति प्रताप कुल मंडन धीर ॥ ता सुत रामदास परबीन । नंदनु भासकरनु सुषलीन ॥ ता सुत कुल मंडन 'परिमल्ल' । बस आगरे मैं तजि सल्लु ॥" उस समय आगरेमे सम्राट अकबरका शासन था। उसकी प्रशंसा करते हुए कविने लिखा है, "वह दूसरे सूर्यकी भांति तपता है, उसके राज्यमें कही अनीति नहीं है, और उसने समूची पृथ्वीको जीत लिया है", "बब्बर पाति साहि होइ गयो। ता सुतु साहि हिमाउ भयो । ता सुतु अकबरु साहि सुजानु । सो तप तपै दूसरौ भानु । ताके राज न कहूं अनीति । वसुधा सर करै सब जीति ॥३२॥" कवि परिमल्ल बरहिया जातिमें उत्पन्न हुए थे। उस समय बरहियोंके अनेकों घर ग्वालियरमे थे। सभी वैभव-सम्पन्न; मर्यादापूर्ण और यशस्वी थे। उनमें सर्वोत्कृष्ट होनेके कारण ही चन्दन चौधरी कहलाते थे। कहनेका तात्पर्य यह कि कविका जन्म एक उच्च परिवारमे हुआ था। श्रीपाल चरित्र यह काव्य अत्यधिक लोकप्रिय था। इसकी इतनी हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध हैं कि यहां सबका उल्लेख असम्भव ही है। छह प्रतियोंका विवरण काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाकी बीसवी त्रैवार्षिक रिपोर्ट में दिया गया है। ये प्रतियां क्रमशः वि० सं १८०७, १८३५, १८५६, १८७४, १९१३ और १. श्रीपालचरित्र, पद्य ५, काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाकी २०वी त्रवार्षिक रिपोर्ट, नं०४।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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