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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
जिनवर श्रीमुषि उपदिसउं भविकलोक सुषकाजि । जिन प्रतिमा जिन सारणी माषि श्रीजिनराजि ॥ प्रतिमा जिननी जिनसूरि प्राण हि एकति
अहिभव परभव सुष लहई इम भाषई अरिहंत ॥१-३॥" स्तम्भनपार्श्वनाथस्तवनम् ___ श्री कुशललाभने इस स्तवनको रचना खम्भातमें, वि० सं० १६५३ में की थी। स्तम्भन पार्श्वनाथकी सातिशय मूत्ति है। संस्कृतमे स्तम्भन पार्श्वनाथको लेकर अनेकों स्तुति-स्तोत्रोकी रचना होती रही है। तरुणप्रभाचार्य और जिनसोमसूरिके स्तम्भनपार्श्वनाथस्तवनोका संकलन 'मन्त्राधिराजकल्प' में हुआ है। हिन्दीमे कुशललाभका 'स्तम्भनपार्श्वनाथस्तवनम्' उसी परम्परामे है। इस स्तवनका आदि और अन्त निम्न प्रकारसे है, आदि
"प्रभु प्रणमुरे पास जिणेसर थमणौ, गुण गावारे भुज मन उलट अति घणौ । ज्ञानी विणरे एहनी आद न को लहै, तोहें पणिरे गीतारथ गूरु ईम कहै ॥"
अन्त
"ईमि स्तन्यो स्थंभण पास स्वामी नयर श्रीषमायतें, जम सहा गुरु श्रीमुष सुणिव वाणि सास्त्र आगल संमते । ए आद मूरति सकल सुरति सेवता सुख पांमीए, मनभाव आणि लाभ जाणि, कुशललाम पजपये ॥"
गौडीपार्श्वनाथस्तवनम्
__ गौडी पार्श्वनाथको भी सातिशय प्रतिमा है। उसके दर्शन करनेसे रोग-शोक दूर हो जाते है । श्री यशोविजयका संस्कृतमे लिखा हुआ 'गौडीपार्श्वनाथस्तवन' अत्यधिक प्रसिद्ध है। श्री कुशललाभका 'गोडोपार्श्वनाथस्तवन' हिन्दीकी रचना है । इसमे २३ पद्य है। स्तवनमे गौडीपार्श्वनाथकी भक्ति ही मुख्य है । कविने १. इसकी हस्तलिखित प्रति, श्री दि० जैन मन्दिर बधीचन्दजी, जयपुरके गुटका मं०
६२ में निबद्ध है। २. यह स्तवन, बडोदराके श्री शान्तिविजयजीके भण्डारमें मौजूद है। इसकी दूसरी
प्रति, जयपुरके पं० लूणकरणजीके मन्दिरमें, गुटका नं० ६६ में अंकित है। ३. जनस्तोत्रसन्दोह १, मुनि चतुरविजय-द्वारा सम्पादित, अहमदाबाद, पृ० ३६४ । ४. जैन गुर्जरकविओ, पहला भाग, पृ० २१६ ।