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सद है 'न मारिये न पूजिये' सो यह दृष्टान्त सही है और तुम्हारा जवाब पण्डिताई के राह पर तो है नहीं क्योंकि सूत्र के पागनुपाठ खोल धरने थे कि पूजा का यह नफा है। परन्तु होते तो लिखते न हों तो कहां से लिखें । और अपनी तर्फ से तो सूत्रों में बहुतेरा ही हूंड रहे परन्तु कहीं होते तो पाते ॥ हां अलबत्ता सूत्र में से ढूंड ढांड के एकदशवे कालिक के ८ वें अध्ययन की गाथा ५५ वीं ब्रह्मचारी के अर्थ में है सो खोल धरते हैं यथा ' चितिभित्तं न निज्झाए नारी वास
अलंकि, भरकर पिवदणं, दिदंपडि समा |हरे ॥ १ ॥ अस्यार्थः साधु ब्रह्मचारी पुरुष चि० चित्राम की भीत देखे नहीं ना० वा अथवा स्त्री अलङ्कार अर्थात् भूपण (गहने),