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जी का तप निष्फल तो न हुआ क्योंकि वे तो तपके प्रभाव से केवल ज्ञान पाकर मुक्ति में गये हैं जो फटे कपड़ों से तप निष्फल हो जाता तो केवल ज्ञान और मुक्ति कहां से होती, सो लिङ्गिये का कहना सूत्रार्थ के विरुद्ध है क्योंकि फटे कपड़ों सेतप, जप, दान, सामायिक निष्फल कदापि नहीं होगा जैसे कि कोई फटे कपडे पहरकर क्षीर खाय तो क्या मुख मीठा नहीं होगा और क्या पुष्टि नहीं होगी अपितु अवश्यमेव होगी इसी दृष्टांत से, फटे वस्त्र वाले पुरुष का करा हुआ
सत्कर्म निष्फल कैसे होगा हां अलबत्ता लि|| ङ्गियों की समझ ऐसी होगी, कि फटे कपड़े | में को जप तप छण जाता है अपितु ऐसे || नहीं उनका यह लिखना झूठ है ॥ १५ ॥
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