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काम को निषेधा है और फिर उसी काम को अङ्गीकार किया है यह परस्पर विरुद्ध है १४ । और ४१२ वें पत्र पर लिखा है कि घृत, गुड़, लवण अग्नि में गेरे और दान तप पूजा, सामायिक फटे कपड़ों से करे तो निष्फल " इस लेख को हम खण्डन करते हैं उत्तराध्ययन, अध्ययन १२ वां गाथा ६ ठी हर केशी बल तपस्वी को ब्राह्मण कहते हुये यथा उक्तं च उम चेलए पंसु पिशाय भूए संकर दुसं परि हरिएकंडे " इति वचनात् अस्यार्थः असार वस्त्र रज करी पिशाच रूप | उकरडी के नांखे समान वस्त्र धारा है कण्ड | इत्यर्थः । हरकेशी वल साधु के ऐसे फटे | कपड़े थे जो ब्राह्मण कहते थे कि रूड़ी के उठाए हुए कपड़े हैं। तर्क ० तो फिर हरकेशी
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