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तो प्रत्यक्ष प्रतिमा में चारों निक्षेपे मानते हो फिर तुमने भाव निक्षेपे में मूर्ति को क्यों नहीं लिखा ? सो तुम्हारा लिखना तुम्हारे ही कहने बमूजिव विरुद्ध है १३ । २४६ वें पत्र पर लिखा है कि लोकोत्तर मिथ्यात, वह है कि जो भगवान की प्रतिमा को इस लोक के हेतु पूजे, जैसे कि यह काम मेरा होजावेगा तो मैं पूजा कराऊंगा और छत्र चढ़ाऊंगा यह मिथ्यात" है फिर पत्र ४१२ वें पर लिखा है कि “द्रव्य लाभ के वास्ते पीले वस्त्र पहर के पूजा करे और शत्रु जीतने के वास्ते काले वस्त्र पहर के पूजा करे और ऐसे २ अनेक इस लोक के अर्थ पूजा के फल लिखे हैं (सो) यह क्या “ कमली की नाथ कभी नाक कभी हाथ " क्योंकि प्रथम उसी